चामर छंद आधारित गीत
चातकी गुहार भी सदैव मोह में ढली।
बीतती हुई निशा बड़ी लगे भली- भली।
नीलिमा अनंत की वितान रूप नील सी।
मंजुला दिखे निहारिका विशाल झील सी।
आसमान शोभिनी प्रकाश भंगिमा भरी।
वो विभावरी चली लगे निवेदिता खरी।
झींगुरी प्रलाप गूंज खंद्दरों गली-गली।
चातकी गुहार भी सदैव मोह में ढली।
काल अंधकार का महा वितान छोड़ता।
शंख नाद भी बजा प्रमाद ऊंघ तोड़ता।
पूर्व के मुखारविंद स्वर्ण रूप सा जड़ा।
पक्ष-पक्ष भानु का प्रकाश पूंज है झड़ा।
मोहिनी सरोज की खिली लगे कली-कली।।
चातकी गुहार भी सदैव मोह में ढली।
भोर नन्दिनी उठी अबोध रूप भा गया।
कोकिला प्रमोद में कहे बसंत आ गया
मोह में फँसा विमुग्ध भृंग है प्रमाद में।
हंस है उदास सा मरालिनी विषाद में।
हो उमंग में विभोर मोद से हवा चली।।
चातकी गुहार भी सदैव मोह में ढली।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'