चामर छंद आधारित गीत
चातकी गुहार भी सदैव मोह में ढली।
बीतती हुई निशा बड़ी लगे भली- भली।
नीलिमा अनंत की वितान रूप नील सी।
मंजुला दिखे निहारिका विशाल झील सी।
आसमान शोभिनी प्रकाश भंगिमा भरी।
वो विभावरी चली लगे निवेदिता खरी।
झींगुरी प्रलाप गूंज खंद्दरों गली-गली।
चातकी गुहार भी सदैव मोह में ढली।
काल अंधकार का महा वितान छोड़ता।
शंख नाद भी बजा प्रमाद ऊंघ तोड़ता।
पूर्व के मुखारविंद स्वर्ण रूप सा जड़ा।
पक्ष-पक्ष भानु का प्रकाश पूंज है झड़ा।
मोहिनी सरोज की खिली लगे कली-कली।।
चातकी गुहार भी सदैव मोह में ढली।
भोर नन्दिनी उठी अबोध रूप भा गया।
कोकिला प्रमोद में कहे बसंत आ गया
मोह में फँसा विमुग्ध भृंग है प्रमाद में।
हंस है उदास सा मरालिनी विषाद में।
हो उमंग में विभोर मोद से हवा चली।।
चातकी गुहार भी सदैव मोह में ढली।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
भोर नन्दिनी उठी अबोध रूप भा गया।
ReplyDeleteकोकिला प्रमोद में कहे बसंत आ गया
बहुत ही सुन्दर सृजन कुसुम जी 🙏
जी बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
Deleteसुरमई अंजन लगा निकली निशा।
ReplyDeleteचाँदी की पाजेब से छनकी दिशा।।
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चामर छंद पर आधारित अति मनमोहक रचना दी। शब्द शिल्प बहुत सुंदर है।
सस्नेह प्रणाम दी
सादर
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हृदय से आभार आपका श्वेता।
Deleteबहुत दिनों बाद पोस्ट देखी ।
वाह
ReplyDeleteबहुत खूब
पढने को जी चाहे ऐसी रचना
पधारें- तुम हो तो हूँ
जी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteवाह
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय
Deleteशब्दों से कितना सुंदर अनुबंध है आपका।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
सस्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर सुगठित रचना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
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