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Wednesday, 17 July 2024

सावन मनभावन


 सावन मनभावन 


ऋतु का सुंदर रूप उजागर

सावन आतुर है आने को।

मन वीणा में सरस रागिनी 

गान खुशी का अब गाने को।


ओस कणों के संग सुनहली,

उर्मिल देखो क्रीड़ा करती।

सूरज की चमकीली बाँहें,

वसुधा आँगन आभा भरती।

हवा चली है, मन मुकुलित सा

मचल रहा सब कुछ पाने को।


आज पवन है भीगी भीगी,

पात-पात निखरा-निखरा।

हर बिरवे की डाली मुखरित, 

कानन का आँगन हरा-भरा।

श्याम सलौने मचल रहे हैं,

आकाश रेख तक छाने को।।


माटी महकी सौरभ बिखरा,

सरित कूल दादुर का खेला‌

विहग टोलियाँ कलरव करती,

खुशियों का सजता है मेला।

कवि के उर  में कविता मचली

भावों के दीप जलाने को।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'