विश्व कविता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌷
नव रसों का मेह कविता
थाह गहरे सिंधु जैसी
उर्मिया मन में मचलती
शब्द के भंडार खोले
लेखनी मोती उगलती।।
लिख रहे कवि लेख अनुपम
भाव की रस धार मीठी
गुड़ बने गन्ना अनूठा
चाशनी चढ़ती अँगीठी
चाल ग़ज़लों की भुलाकर
आज नव कविता खनकती।
स्रोत की फूहार इसमें
स्वर्ग का आनंद भरते
सूर्य किरणों से मिले तो
इंद्रधनुषी स्वप्न झरते
सोम रस सी शांत स्निगधा
तामरस सी है बहकती।।
वीर या श्रृंगार करुणा
नव रसो का मेह छलका
रूप कितने ही हैं इसके
ताल में ज्यों चाँद झलका
कंटकों सी ले चुभन तो
रात रानी बन लहकती।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 22 मार्च 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
जी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
बहुत बहुत खुशनुमा कविता पर कविता ! अभिनन्दन.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका नूपुरं जी।
Deleteसस्नेह
वाह! अद्भुत मिठास। आनंद आ गया।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका विश्वमोहन जी।
Delete
ReplyDeleteस्रोत की फूहार इसमें
स्वर्ग का आनंद भरते
सूर्य किरणों से मिले तो
इंद्रधनुषी स्वप्न झरते
सोम रस सी शांत स्निगधा
तामरस सी है बहकती।।
.. गज़ब अभिव्यंजना कविता की ।
बहुत बधाई कुसुम जी।
वाह!!!
ReplyDeleteसचमुच नवरसों के मेह सी अप्रतिम...
लाजवाब सृजन ।
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी।
Deleteसस्नेह।