पथिक
रे मन तू पथिक
किस गांव का ।
भटकत सुबह शाम
ना ठौर ना ठांव का,
किस सुधा को ढ़ूंढ़ता
जुग कितने बीते,
डोलत इस उस पथ
रहे तृष्णा घट रीते।
रे मन तू पथिक
किस गांव का।
इस पिंजरे को
समझ के अपना,
देख रहा तू
भ्रम का सपना ,
लम्बी सफर का
तार जब जुड़ जायेगा,
देखते -देखते
पाखी तो उड़ जायेगा।
रे मन तू पथिक
किस गांव का।
होश नहीं तुझको
तू कौन दिशा से आया,
शीतल छांव में भूला
समय गमन का आया,
बांध गठरिया चल तू
ये देश वीराना जान ले,
आसक्ति को छोड़ कर
निज स्वरूप पहचान ले ।
रे मन तू पथिक
किस गांव का।
कुसुम कोठारी।
रे मन तू पथिक
किस गांव का ।
भटकत सुबह शाम
ना ठौर ना ठांव का,
किस सुधा को ढ़ूंढ़ता
जुग कितने बीते,
डोलत इस उस पथ
रहे तृष्णा घट रीते।
रे मन तू पथिक
किस गांव का।
इस पिंजरे को
समझ के अपना,
देख रहा तू
भ्रम का सपना ,
लम्बी सफर का
तार जब जुड़ जायेगा,
देखते -देखते
पाखी तो उड़ जायेगा।
रे मन तू पथिक
किस गांव का।
होश नहीं तुझको
तू कौन दिशा से आया,
शीतल छांव में भूला
समय गमन का आया,
बांध गठरिया चल तू
ये देश वीराना जान ले,
आसक्ति को छोड़ कर
निज स्वरूप पहचान ले ।
रे मन तू पथिक
किस गांव का।
कुसुम कोठारी।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12.12.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3547 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सुंदर रचना
ReplyDelete
ReplyDeleteनमस्ते,
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 12 दिसंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
1609...होश नहीं तुझको तू कौन दिशा से आया...
Amazing Blogs Keep Writing Amazing Content..
ReplyDeleteNanne Parmar
techappen
StoryBookHindi
technoXT
nefactory
इस पिंजरे को
ReplyDeleteसमझ के अपना,
देख रहा तू
भ्रम का सपना ,
लम्बी सफर का
तार जब जुड़ जायेगा,
देखते -देखते
पाखी तो उड़ जायेगा।
शरीर रूपी पिजड़े से आत्मा रूपी पक्षी उड़ जायेगा शरीर को निर्जीव छोड़ कर...
वाह!!!
लाजवाब सृजन
ये पिंजरा शरीर का जिसे हम अपना मान लेते हैं ... कई बार इस दुःख का कारण बन जाता है ...
ReplyDeleteसही और सटीक बात ...
बहुत सुन्दर सखी ।
ReplyDeleteThe blog is really good. hand vacuum cleaner
ReplyDelete