अविरल अनुराग।
नेह स्नेह की गागरिया में
सुधा लहर सा बहता जाऊँ
खिले प्रीत फुलवारी सुंदर
गीत मधुर से आज सुनाऊँ।
हरित धरा तुम सरसी-सरसी
मैं अविरल सा अनुराग बनूँ
कल-कल बहती धारा है तू
मैं निर्झर उद्गम शैल बनूँ
कभी घटा में कभी जटा में
मनहर तेरी छवि को पाऊँ।।
महका-महका चंदन पीला
सिलबट्टे पर घिसता जाता
तेरे भाल सजा जो घिसकर
अंतस पुलकित हो लहराता
दीपक की ज्योति तू उज्जवल
मैं बाती बनकर लहराऊँ।।
सूरज की हेमांगी किरणें
वसुधरा को ज्यों रंग जाती
तमसा के प्रांगण को जैसे
चंदा की चंदनिया भाती
नीली सी चुनरी फहराना
मैं टिमटिम तारा बन जाऊँ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०९-१०-२०२१) को
'अविरल अनुराग'(चर्चा अंक-४२१२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी बहुत बहुत आभार आपका रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए।
Deleteमैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
सुंदरऔर मधुर काव्य सृजन। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आपको।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सादर।
प्रेमासिक्त ह्रदय का सुकोमल, सुमधुर गान प्रिय कुसुम बहन नए बिम्ब विधान और मोहक प्रतीकों से सुसज्जित प्रस्तुति सराहना से परे हैं। छायावादी कवियों की सी सौम्य और मनभावन शैली में लिखी रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आपको इस सुन्दर रचना के लिए।🙏🌷🌷🌷❤️🌷
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका रेणु बहन आपका हर वस्तु को गहनता से देखने का नजरिया उस वस्तु को विशेष बना देती है।
Deleteसस्नेह आभार आपके अतुल्य स्नेह का।
महका-महका चंदन पीला
ReplyDeleteसिलबट्टे पर घिसता जाता
तेरे भाल सजा जो घिसकर
अंतस पुलकित हो लहराता
दीपक की ज्योति तू उज्जवल
मैं बाती बनकर लहराऊँ।।
अहा!!!!! सुन्दर 👌👌👌😀🙏
मैं अभिभूत हूँ रेणु बहन आपकी उपस्थिति नव उर्जा तो है ही साथ ही जीवंतता का संदेश भी है ।
Deleteसस्नेह आभार रेणु बहन।
हरित धरा तुम सरसी-सरसी
ReplyDeleteमैं अविरल सा अनुराग बनूँ
कल-कल बहती धारा है तू
मैं निर्झर उद्गम शैल बनूँ
कभी घटा में कभी जटा में
मनहर तेरी छवि को पाऊँ।।...हर पंक्ति में सुंदर,सुकोमल मन के भाव पुष्प जैसे खिल रहे हैं,सुंदर नायाब सृजन के लिए बहुत बधाई ।
बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी प्रतिक्रिया सदा रचना को नये अर्थ देती है ।
Deleteसदा स्नेह बनाए रखें।
सस्नेह।
हरित धरा तुम सरसी-सरसी
ReplyDeleteमैं अविरल सा अनुराग बनूँ
कल-कल बहती धारा है तू
मैं निर्झर उद्गम शैल बनूँ
कभी घटा में कभी जटा में
मनहर तेरी छवि को पाऊँ।।
बहुत बहुत बहुत ही प्रभावी और उम्दा, सुंदर रचना
उत्साहवर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ मनीषा जी।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
मनभावन सृजन सखी
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका सखी।
Deleteब्लॉग पर आपकी उपस्थिति उत्साहवर्धक रही।
सस्नेह।
Bahut Umda Prastuti.....
ReplyDeleteMere Blog par aapka swagat hai
जी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
अति मनमोहक सृजन दी।
ReplyDeleteभाव और शब्द-शिल्प का संतुलित संयोजन बेहद मनभावन है। हर बंध लाज़वाब है।
सस्नेह प्रणाम दी
सादर।
बहुत बहुत स्नेह आभार श्वेता आपकी थोड़े से गहन शब्द रचना को जादुई स्पर्श दे देते हैं ।
Deleteसस्नेह आभार बहना।
नेह स्नेह की गागरिया में
ReplyDeleteसुधा लहर सा बहता जाऊँ
खिले प्रीत फुलवारी सुंदर
गीत मधुर से आज सुनाऊँ।
बहुत सुन्दर सृजन
जी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना को उर्जा मिली।
सादर।
महका-महका चंदन पीला
ReplyDeleteसिलबट्टे पर घिसता जाता
तेरे भाल सजा जो घिसकर
अंतस पुलकित हो लहराता
दीपक की ज्योति तू उज्जवल
मैं बाती बनकर लहराऊँ।।
बहुत ही मनभावन लाजवाब सृजन
वाह!!!