हाइकु शिल्प आधारित लघु रचनाएं।
अम्बर सजा
इंद्रधनुषी रंग
बौराई दिशा।
चाँद सितारे
ले उजली सी यादें
आये आँगन।
कौन छेडता
मन वीणा के तार
धीरे धीरे से।
दूधिया नभ
निहारिका शोभित
मन चंचल ।
हवा बासंती
बहती धीरे धीरे
गूँजे संगीत।
दरख्त मौन
बसेरा पंछियों का
सुबह तक।
सूरज जला
पहाड़ थे पिघले
नदी उथली ।
राह के काँटे
किसने कब बाँटे
लक्ष्य को साधें।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
कमाल के हाइकू हैं सभी ...
ReplyDeleteमन की वीणा के तार ... राह के कांटे .... इस माध्यम से अपनी बात स्पष्ट रखने का बेहतरीन प्रयास है हाइकू ...
सुंदर व्याख्यात्मक व्याख्या से लेखन प्रवाह मान हुआ , उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
Deleteसादर।
वाह
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह अति सुन्दर दीदी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका भाई, उत्साह वर्धन के लिए हृदय से आभार।
Deleteराह के काँटे
ReplyDeleteकिसने कब बाँटे
लक्ष्य को साधें... वाह!बेहतरीन 👌
बहुत बहुत सा स्नेह आभार।
Deleteलेखनी उर्जावान हुई आपकी सकारात्मक टिप्पणी से।
बहुत बहुत आभार आपका पम्मी जी पांच लिंक में रचना को स्थान देने के लिए।
ReplyDeleteसादर सस्नेह।
दरख्त मौन
ReplyDeleteबसेरा पंछियों का
सुबह तक।
सुबह होते ही फुर्र ....दरख्त फिर खामोश भी..
लाजवाब हायकु।
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया।
ReplyDeleteसस्नेह।