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Tuesday, 16 November 2021

मन मगन


 मन मगन


रागिनी उठ कर गगन तक

उर्मि बन कर झिलमिलाई।


गीत कितने ही मधुर से

हिय नगर से उठ रहे हैं

साज बजते कर्ण प्रिय जो

मधु सरस ही लुट रहे हैं

नाच उठता मन मयूरा

दूर सौरभ लहलहाई।।


आज कैसी ये लगन है

पाँव झाँझर से बजे हैं

उड़ रहा है खग बना मन

हर दिशा तारक सजे है

लो पवन भी गुनगुनाकर

कुछ महक कर सरसराई।।


कुनकुनी सी धूप मीठी 

वर्तुलों में कौमुदी सी

ढल रही है साँझ श्यामा

ज्यों हरित हो ईंगुदी सी

तान वीणा की मचलकर

गीतमय हो मुस्कुराई।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

17 comments:

  1. सरसराई।।



    कुनकुनी सी धूप मीठी

    वर्तुलों में कौमुदी सी

    ढल रही है साँझ श्यामा

    ज्यों हरित हो ईंगुदी सी

    तान वीणा की मचलकर

    गीतमय हो मुस्कुराई।।
    ,,,,,, बहुत सुंदर रचना ।

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    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सस्नेह।

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  2. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

      Delete
  3. आज कैसी ये लगन है

    पाँव झाँझर से बजे हैं

    उड़ रहा है खग बना मन

    हर दिशा तारक सजे है

    उम्दा सृजन

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका। उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया।
      सादर।

      Delete
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(१८-११-२०२१) को
    ' भगवान थे !'(चर्चा अंक-४२५२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. चर्चा मंच पर रचना को रखने के लिए हृदय से आभार आपका।
      सादर सस्नेह।

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  5. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका। उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया।
      सादर।

      Delete
  6. कुनकुनी सी धूप मीठी
    वर्तुलों में कौमुदी सी
    ढल रही है साँझ श्यामा
    ज्यों हरित हो ईंगुदी सी
    अत्यंत सुंदर..., मनमोहक सृजन ।

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    1. मोहक प्रतिक्रिया।
      आपकी स्नेह भरी प्रतिक्रया से लेखन को सदा नव उर्जा मिलती है।
      सस्नेह।

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  7. आज कैसी ये लगन है

    पाँव झाँझर से बजे हैं

    उड़ रहा है खग बना मन

    हर दिशा तारक सजे है

    लो पवन भी गुनगुनाकर

    कुछ महक कर सरसराई।।...मन में मिठास घोलती सुंदर लाजवाब पंक्तियां...प्राकृतिक छटा बिखेरती उत्कृष्ट रचना।

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी ।
      उत्साह वर्धन हेतु।
      सस्नेह।

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  8. अत‍ि सुंदर पंक्‍त‍ियां, कुसुम जी , आज इन पंक्‍त‍ियों ने अज्ञेय जी की कव‍िता "शरद" याद द‍िला दी, चल‍िए अब याद द‍िला ही दी है तो लगे हाथ मैं भी ब्‍लॉग पर डाल ही देती हूं

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  9. बहुत बहुत आभार आपका अलकनंदा जी आपकी प्रतिक्रिया सदा सम्मोहित करती है । आपको विषय मिला मेरे लेखन से लेखन सार्थक हुआ।
    सस्नेह

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  10. पांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
    ये मेरे लिए सदा हर्ष का विषय है।
    सादर सस्नेह।

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