मन मगन
रागिनी उठ कर गगन तक
उर्मि बन कर झिलमिलाई।
गीत कितने ही मधुर से
हिय नगर से उठ रहे हैं
साज बजते कर्ण प्रिय जो
मधु सरस ही लुट रहे हैं
नाच उठता मन मयूरा
दूर सौरभ लहलहाई।।
आज कैसी ये लगन है
पाँव झाँझर से बजे हैं
उड़ रहा है खग बना मन
हर दिशा तारक सजे है
लो पवन भी गुनगुनाकर
कुछ महक कर सरसराई।।
कुनकुनी सी धूप मीठी
वर्तुलों में कौमुदी सी
ढल रही है साँझ श्यामा
ज्यों हरित हो ईंगुदी सी
तान वीणा की मचलकर
गीतमय हो मुस्कुराई।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सरसराई।।
ReplyDeleteकुनकुनी सी धूप मीठी
वर्तुलों में कौमुदी सी
ढल रही है साँझ श्यामा
ज्यों हरित हो ईंगुदी सी
तान वीणा की मचलकर
गीतमय हो मुस्कुराई।।
,,,,,, बहुत सुंदर रचना ।
जी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
आज कैसी ये लगन है
ReplyDeleteपाँव झाँझर से बजे हैं
उड़ रहा है खग बना मन
हर दिशा तारक सजे है
उम्दा सृजन
बहुत बहुत आभार आपका। उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(१८-११-२०२१) को
' भगवान थे !'(चर्चा अंक-४२५२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चर्चा मंच पर रचना को रखने के लिए हृदय से आभार आपका।
Deleteसादर सस्नेह।
सुंदर पंक्तियाँ....
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका। उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
कुनकुनी सी धूप मीठी
ReplyDeleteवर्तुलों में कौमुदी सी
ढल रही है साँझ श्यामा
ज्यों हरित हो ईंगुदी सी
अत्यंत सुंदर..., मनमोहक सृजन ।
मोहक प्रतिक्रिया।
Deleteआपकी स्नेह भरी प्रतिक्रया से लेखन को सदा नव उर्जा मिलती है।
सस्नेह।
आज कैसी ये लगन है
ReplyDeleteपाँव झाँझर से बजे हैं
उड़ रहा है खग बना मन
हर दिशा तारक सजे है
लो पवन भी गुनगुनाकर
कुछ महक कर सरसराई।।...मन में मिठास घोलती सुंदर लाजवाब पंक्तियां...प्राकृतिक छटा बिखेरती उत्कृष्ट रचना।
बहुत बहुत सा स्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी ।
Deleteउत्साह वर्धन हेतु।
सस्नेह।
अति सुंदर पंक्तियां, कुसुम जी , आज इन पंक्तियों ने अज्ञेय जी की कविता "शरद" याद दिला दी, चलिए अब याद दिला ही दी है तो लगे हाथ मैं भी ब्लॉग पर डाल ही देती हूं
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका अलकनंदा जी आपकी प्रतिक्रिया सदा सम्मोहित करती है । आपको विषय मिला मेरे लेखन से लेखन सार्थक हुआ।
ReplyDeleteसस्नेह
पांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
ReplyDeleteये मेरे लिए सदा हर्ष का विषय है।
सादर सस्नेह।