Monday, 8 November 2021

सुख भरे सपने


 सुख भरे सपने


रात निखरी झिलमिलाई

नेह सौ झलती रही

चाँदनी के वर्तुलों में

सोम रस भरती रही।


सुख भरे सपने सजे जब

दृग युगल की कोर पर

इंद्रनीला कान्ति शोभित

व्योम मन के छोर पर

पिघल-पिघल कर निलिमा से

सुर नदी झरती रही।।


गुनगुनाती है दिशाएँ

राग ले मौसम खड़ा

बाँह में आकाश भरने

पाखियों सा  मन उड़ा

पपनियाँ आशा सँजोए

रात  यूँ ढलती रही।।


विटप भरते रागिनी सी

मिल अनिल की थाप से

झिलमिलाता अंभ सरि का

दीप मणि की चाप से 

उतर आई अप्सराएँ

भू सकल सजती रही ।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

21 comments:

  1. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  2. गुनगुनाती है दिशाएँ

    राग ले मौसम खड़ा

    बाँह में आकाश भरने

    पाखियों सा मन उड़ा

    पपनियाँ आशा सँजोए

    रात यूँ ढलती रही.. वाह!बहुत बहुत ही सुंदर सृजन दी।
    सादर

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    1. बहुत आभार आपका अनिता आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया से रचना प्रवाहित हुई।
      सस्नेह।

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार
    (9-11-21) को बहुत अनोखे ढंग"(चर्चा अंक 4242) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी , चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।मैं उपस्थित रहूंगी चर्चा पर ।
      सादर सस्नेह।

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  4. रात निखरी झिलमिलाई
    नेह सौ झलती रही
    चाँदनी के वर्तुलों में
    सोम रस भरती रही।
    आगाज़ इतना खूबसूरत तो गीत के समापन की तो बात ही क्या कहिए । अत्यंत सुंदर सृजन ।

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    1. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से लेखन और लेखनी दोनों में उत्साह प्रवाहित होता है ।
      सस्नेह आभार मीना जी।

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  5. विटप भरते रागिनी सी

    मिल अनिल की थाप से

    झिलमिलाता अंभ सरि का

    दीप मणि की चाप से

    उतर आई अप्सराएँ

    भू सकल सजती रही ।।..बहुत सुंदर सृजन ।

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    1. हृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह।

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  6. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी, आपकी प्रतिक्रिया से लेखनी उर्जावान हुई।
      सादर।

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  7. यामिनी का सुंदर ललित वर्णन

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अनिता जी मोहक प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  8. गुनगुनाती है दिशाएँ

    राग ले मौसम खड़ा

    बहुत सुन्दर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  9. जीवन में सुख कितना भी मिले, लेकिन सुख-सपन देखने की कोई थाह नहीं

    बहुत सुन्‍दर रचना

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    1. सार्थक उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार कविता जी ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सस्नेह।

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  10. सुख भरे सपने सजे जब

    दृग युगल की कोर पर

    इंद्रनीला कान्ति शोभित

    व्योम मन के छोर पर

    पिघल-पिघल कर निलिमा से

    सुर नदी झरती रही।।
    वाह!!!
    सराहना से परे...अद्भुत एवं लाजवाब नवगीत।

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    1. स्निग्ध सरस प्रतिक्रिया से रचना गतिमान हुई सुधा जी स्नेह आभार आपका।
      सस्नेह।

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  11. बहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी।
    उत्साह वर्धन हुआ।
    सादर।

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