Thursday, 11 November 2021

सीता स्वयंवर और परशुरामजी

आल्हा (वीर छंद)

सीता स्वयंवर और परशुरामजी


नाद उठा अम्बर थर्राया

एक पड़ी भीषण सी थाप।

तृण के सम बिखरा दिखता था

भूमि पड़ा था शिव का चाप।।


शाँत खड़े थे धीर प्रतापी, 

दसरथ  सुत राघव गुणखान।

तोड़ खिलौना ज्यों बालक के,

मुख ऊपर सजती मुस्कान।।


स्तब्ध खड़े थे सब बलशाली,

हर्ष लहर फैली चहुँ ओर।

राज्य जनक के खुशियाँ छाई

नाच उठा सिय का हिय मोर।।


हाथ भूमिजा अवली सुंदर

ग्रीवा भूपति डाला हार।

कन्या दान जनक करते

हर्षित था सारा परिवार।।

 

रोर मचा था द्रुतगति भीषण

काँप उठा था सारा खंड।

विस्मय से सब देख रहे थे

धूमिल सा शोभित सब मंड।।


ऋषि तेजस्वी कर में फरसा 

दीप्तिमान मुखमंडल तेज।

आँखें लोहित कंपित काया

मुक्त गमन तोड़े बंधेज।।


दृष्टि गई आराध्य धनुष पर

अंगारों सी सुलगी दृष्टि

घोर गर्जना बोले कर्कश

भय निस्तब्ध हुई ज्यों सृष्टि।।


घुड़के जैसे सिंह गरज हो

पात सदृश कांपे सब राव।

किसने आराध्य धनुष तोड़ा

कौन प्रयोजन फैला चाव।।


सब की बंध गई थी घिग्घी 

मूक सभी थे उनको  देख

राम खड़े थे भाव विनय के

 मंद सजे मुख पर स्मित रेख।।


बोले रघुपति शीश नमा फिर

मुझसे घोर हुआ अपराध

चाप लगा मुझको ये मोहक

देखा जो प्रत्यंचा साध।।


हाथ उठा जब साधन चाहा

भग्न हुआ ज्यूँ जूना काठ

आप कहे तो नव धनु ला दूँ 

इसके जिर्ण दिखे सब ठाठ।।


सुन कर बोल तरुण बालक के

क्रोधाअग्नि पड़ी घृत धार

रे सठ बालक सच बात बता

किसका ये दण्डित आचार।।


होगा कोई सेवक किंचित

धीर धरे चेतन परमात्म 

सेवक धृष्ट नही अनुयाई

आदर स्वामी का निज आत्म।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

 

24 comments:

  1. नाद उठा अम्बर थर्राया

    एक पड़ी भीषण सी थाप।

    तृण के सम बिखरा दिखता था

    भूमि पड़ा था शिव का चाप।।


    बहुत सुन्दर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका , सुंदर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
      सादर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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    1. सादर आभार आपका दी रचना सार्थक हुई।
      सादर। सस्नेह।

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  4. परसुराम जी के ओजस्वी व्यक्तित्व का अत्यंत सुंदर
    शब्द चित्र कुसुम जी । इस छंद के पाठन के पश्चात् परसुराम- लक्ष्मण संवाद पाठ वाचन की बहुत सी यादें ताजा हो गईं। आभार इतने सुन्दर सृजन हेतु ।

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    1. मीना जी सस्नेह आभार,आपकी विस्तृत विशिष्ट टिप्पणी रचना को नये आयाम दे रही है ।
      मन भावन प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  5. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.11.21 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा|
    धन्यवाद

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, मैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी, उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।

      सस्नेह।

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  8. वाह! धनुष की प्रत्यंचा पर चढ़ा एक एक शब्द, सुंदर लयबद्ध,तालबद्ध। अद्भुत आल्हा छंद ।

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    1. मोहक प्रतिक्रिया से रचना जीवंत हुई जिज्ञासा जी।
      सस्नेह आभार आपका।

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  9. हाथ भूमिजा अवली सुंदर

    ग्रीवा भूपति डाला हार।

    कन्या दान जनक करते

    हर्षित था सारा परिवार।।

    वाह!!!
    अद्भुत, अप्रतिम....
    लाजवाब सृजन आल्हा छन्द में।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी, आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सदा नये सोपान मिलते हैं।
      सस्नेह।

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  10. सुंदर प्रस्तुति 😍💓😍💓

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  11. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।

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  12. बाखूबी कलमबद्ध किया है इस संवाद को ... आनंद आ गया
    आँखों के सामने से मंज़र गुज़र गया ...

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    1. बहुत बहुत आभार आपका नासवा जी आपकी प्रतिक्रिया सदा लेखक को उर्जावान बनाता है।
      सादर।

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