दीन हीन
चुल्हा ठंड़ा उदर अनल है
दिवस गया अब रात हुई ।
आँखें जलती नींद नही अब
अंतड़ियां आहात हुई ।
सब पीड़ा से क्षुदा बड़ी है
घर भुमि परिवार छुड़ाया
माता पिता सखा सब छुटे
माटी का मोह भुलाया।
अपनी जड़ें उखाड़ी पौध
स्वाभिमान पर घात हुई।।
एकाकीपन शूल भेदता
हृदय टूट कर तार हुआ
सुधी लेने आयेगा कौन
जीवन ही अब भार हुआ
कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये
कंटक की बरसात हुई।
पर पीड़ा को देखें कैसे
अपनी ही न संभले जब।
जाने कब छुटकारा होगा
श्वास बँधी पिंजर से कब।
हड्डी ढ़ांचा दिखता तन
शाख सूख बिन पात हुई।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
चुल्हा ठंड़ा उदर अनल है
दिवस गया अब रात हुई ।
आँखें जलती नींद नही अब
अंतड़ियां आहात हुई ।
सब पीड़ा से क्षुदा बड़ी है
घर भुमि परिवार छुड़ाया
माता पिता सखा सब छुटे
माटी का मोह भुलाया।
अपनी जड़ें उखाड़ी पौध
स्वाभिमान पर घात हुई।।
एकाकीपन शूल भेदता
हृदय टूट कर तार हुआ
सुधी लेने आयेगा कौन
जीवन ही अब भार हुआ
कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये
कंटक की बरसात हुई।
पर पीड़ा को देखें कैसे
अपनी ही न संभले जब।
जाने कब छुटकारा होगा
श्वास बँधी पिंजर से कब।
हड्डी ढ़ांचा दिखता तन
शाख सूख बिन पात हुई।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
प्रभावशाली सारगर्भित गीत।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 29 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार , सांध्य दैनिक पर रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।
Deleteसब पीड़ा से क्षुदा बड़ी है
ReplyDeleteघर भुमि परिवार छुड़ाया
माता पिता सखा सब छुटे
माटी का मोह भुलाया।....वाह कुसुम जी, क्या खूब लिखा... दीन हीनों की सारी पीड़ा उड़ेल दी आपने इन पंक्तियों में
रचना का मर्म स्पष्ट करती आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ और लेखनी को उर्जा मिली।
Deleteसादर आभार अलकनंदा जी।
चुल्हा ठंड़ा उदर अनल है
ReplyDeleteदिवस गया अब रात हुई ।
आँखें जलती नींद नही अब
अंतड़ियां आहात हुई ।
बहुत ही मार्मिक सृजन कुसुम जी ,सादर नमन
बहुत बहुत आभार प्रिय कामिनी जी।
Deleteआपकी मोहक टिप्पणी से रचना मुखरित हुई।
पर पीड़ा को देखें कैसे
ReplyDeleteअपनी ही न संभले जब।
जाने कब छुटकारा होगा
श्वास बँधी पिंजर से कब।
बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।
बहुत बहुत सा स्नेह आभार ज्योति बहन ।
Deleteउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया आपकी।
एकाकीपन शूल भेदता
ReplyDeleteहृदय टूट कर तार हुआ
सुधी लेने आयेगा कौन
जीवन ही अब भार हुआ
कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये
कंटक की बरसात हुई।
...
मर्मस्पर्शी बेहद सुंदर गीत दी।
सादर।
बहुत बहुत सा स्नेह आभार श्वेता।
Deleteआपकी स्नेहासिक्त प्रतिक्रिया से मन प्रसन्न हुआ।
सस्नेह।
सब पीड़ा से क्षुधा बड़ी है
ReplyDeleteघर भूमि परिवार छुड़ाया
माता पिता सखा सब छूटे
माटी का मोह भुलाया।
आजीविका के लिए अन्यत्र बसे लोगों की व्यथा का हृदयस्पर्शी वर्णन । मर्मस्पर्शी गीत ।
बहुत बहुत आभार मीना जी आपकी मर्म स्पष्ट करती सुंदर व्याख्यात्मक टिप्पणी से रचना सार्थक हुई,और लेखन को नव ऊर्जा।
Deleteएकाकीपन शूल भेदता
ReplyDeleteहृदय टूट कर तार हुआ
सुधी लेने आयेगा कौन
जीवन ही अब भार हुआ
कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये
कंटक की बरसात हुई।
बेहद हृदयस्पर्शी रचना सखी
बहुत बहुत आभार सखी ।
Deleteआपकी मोहक टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
अंतस को झग्झोरता मार्मिक सृजन आदरणीय दीदी.जीवन की जटिलता का यथार्थ चित्रण .
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार प्रिय अनिता आपकी स्नेह से भरी सुंदर प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteपर पीड़ा को देखें कैसे
ReplyDeleteअपनी ही न संभले जब।
जाने कब छुटकारा होगा
श्वास बँधी पिंजर से कब।
हड्डी ढ़ांचा दिखता तन
शाख सूख बिन पात हुई।।
बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब नवगीत।
बहुत आभार आपका सुधा जी ।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया संदेश उत्साहवर्धक होती है।
सस्नेह।
बहुत बहुत आभार आपका।
ReplyDeleteमैं चर्चा मंच पर जरूर उपस्थित रहूंगी।
चर्चा मंच पर रचना को शामिल करना सदा सुखद अहसास है।
सब पीड़ा से क्षुदा बड़ी है
ReplyDeleteघर भुमि परिवार छुड़ाया
माता पिता सखा सब छुटे
माटी का मोह भुलाया।
अपनी जड़ें उखाड़ी पौध
स्वाभिमान पर घात हुई।।
प्रिय कुसुम बहन, शोषित और अभावों से जूझते वर्ग की जीवंत कथा को सुंदर ढंग से लिखा आपने 👌👌👌👌
हार्दिक शुभकामनायें और अम्भार 🌹🌹🙏🌹🌹
सब पीड़ा से क्षुदा बड़ी है
ReplyDeleteबहुत ही हृदयस्पर्शी, मार्मिक सृजन
सादर।
सब पीड़ा से क्षुदा बड़ी है
ReplyDeleteघर भुमि परिवार छुड़ाया
मार्मिक अभिव्यक्ति