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Thursday, 18 June 2020

प्रतीक्षा (इंतजार की बेताबी)

इंतजार की बेताबी

अंधेरे से कर प्रीति
उजाले सब दे दिए,
अब न ढूंढ़ना
उजालों में हमें कभी।

हम मिलेंगे सुरमई
शाम  के   घेरों में ,
विरह का आलाप ना छेड़ना
इंतजार की बेताबी में कभी।

नयन बदरी भरे
छलक न जाऐ मायूसी में,
राहों पर निशां ना होंगे
मुड के न देखना कभी।

आहट पर न चौंकना
ना मौजूद होंगे हवाओं में,
अलविदा भी न कहना
शायद लौट आयें कभी।

       कुसुम कोठारी ।

6 comments:

  1. नयन बदरी भरे
    छलक न जाऐ मायूसी में,
    राहों पर निशां ना होंगे
    मुड के न देखना कभी।
    हमेशा की तरह सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया कुसुम जी।

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  2. बहुत सुंदर रचना,कुसुम दी।

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  3. वाह बेहतरीन सृजन सखी।

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  4. नयन बदरी भरे
    छलक न जाऐ मायूसी में,
    राहों पर निशां ना होंगे
    मुड के न देखना कभी।

    आहट पर न चौंकना
    ना मौजूद होंगे हवाओं में,
    अलविदा भी न कहना
    शायद लौट आयें कभी।..वाह!बहुत ही सुंदर मार्मिक अभिव्यक्ति आदरणीय दीदी .
    सादर

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