जानकी का प्रारब्ध
कराह रहे वेदना के स्वर
अवसाद मंडित मन दिशायें ।
कैसी काली छाया गहरी
प्रारब्धों का जाल रचाये।।
फूलों जैसे चुन चुन करके
आदर्शों से जीवन पाला।
घड़ी पलक में बिखर गया सब
मारा जब अपनों ने भाला।
खेल नियति भी हार चुकी है
विडम्बनाएं चिह्न दिखायें।।
गूंजा एक निश्चल प्रतिकार
सिसका निसर्ग भीगे लोचन
संतप्त मन का हाहाकार
फूट गया बन दारुण क्रदंन्
आज जानकी विहल हृदय से
अवसर्ग मांगे क्षिति भिगोये ।।
हाय वेदना चरम शिखा थी
विश्रांति ही अंतिम आधार।
आलंबन वसुधा की छाती
लिए अंबक आँसू की धार।
पाहन सी फिर हुई अड़ोला
गोद उठा भू प्रीत निभाये।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
कराह रहे वेदना के स्वर
अवसाद मंडित मन दिशायें ।
कैसी काली छाया गहरी
प्रारब्धों का जाल रचाये।।
फूलों जैसे चुन चुन करके
आदर्शों से जीवन पाला।
घड़ी पलक में बिखर गया सब
मारा जब अपनों ने भाला।
खेल नियति भी हार चुकी है
विडम्बनाएं चिह्न दिखायें।।
गूंजा एक निश्चल प्रतिकार
सिसका निसर्ग भीगे लोचन
संतप्त मन का हाहाकार
फूट गया बन दारुण क्रदंन्
आज जानकी विहल हृदय से
अवसर्ग मांगे क्षिति भिगोये ।।
हाय वेदना चरम शिखा थी
विश्रांति ही अंतिम आधार।
आलंबन वसुधा की छाती
लिए अंबक आँसू की धार।
पाहन सी फिर हुई अड़ोला
गोद उठा भू प्रीत निभाये।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
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ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 09 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुन्दर शब्दावली
ReplyDeleteजानकी की बेदना का मर्मस्पर्शी शब्दचित्रण
ReplyDeleteहाय वेदना चरम शिखा थी
विश्रांति ही अंतिम आधार।
आलंबन वसुधा की छाती
लिए अंबक आँसू की धार।
पाहन सी फिर हुई अड़ोला
गोद उठा भू प्रीत निभाये।।
सोचती हूँ अब तो धरा भी कई जानकियों के दर्द को अनसुना कर रही हैंं...काश अब भी धरा यूँ ही अपनी गोद ले ले तड़पती अबलाओं को...
बहुत ही हृदयस्पर्शी नवगीत......।
🙏🙏🙏🙏🙏
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteवाह!कुसुम जी ,सुंदर शब्दों में जानकी की वेदना का चित्रण किया है आपनें । युगों -युगों से नारी जाति अग्नि परीक्षा देती आ रही है ,चाहे वो जानकी हो या साधारण नारी ...।
ReplyDeleteगूंजा एक निश्चल प्रतिकार
ReplyDeleteसिसका निसर्ग भीगे लोचन
संतप्त मन का हाहाकार
फूट गया बन दारुण क्रदंन्
आज जानकी विहल हृदय से
अवसर्ग मांगे क्षिति भिगोये ।।
बेहद हृदयस्पर्शी नवगीत सखी 👌
वाह बहुत सुंदर रचना सखी।
ReplyDeleteजानकी की वेदना के स्वर में निहित स्त्री व्यथा का मार्मिक चित्रण है दी।जब बहुत कुछ कहना होता है शब्द मौन हो जाते है।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी सृजन दी।