Sunday, 7 June 2020

जानकी का प्रारब्ध

जानकी का प्रारब्ध

कराह रहे वेदना के स्वर
अवसाद मंडित मन दिशायें ।
कैसी काली छाया गहरी
प्रारब्धों का जाल रचाये।।

फूलों जैसे चुन चुन करके
आदर्शों से जीवन पाला।
घड़ी पलक में बिखर गया सब
मारा जब अपनों ने भाला।
खेल नियति भी हार चुकी है
विडम्बनाएं चिह्न दिखायें।।

गूंजा एक निश्चल प्रतिकार
सिसका निसर्ग भीगे लोचन
संतप्त मन का हाहाकार
फूट गया बन दारुण क्रदंन्
आज जानकी विहल हृदय से
अवसर्ग मांगे क्षिति भिगोये ।।

हाय वेदना चरम शिखा थी
विश्रांति ही अंतिम आधार।
आलंबन वसुधा की छाती
लिए अंबक आँसू की धार।
पाहन सी फिर हुई अड़ोला
गोद उठा भू प्रीत निभाये।।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

9 comments:

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  2. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 09 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. जानकी की बेदना का मर्मस्पर्शी शब्दचित्रण
    हाय वेदना चरम शिखा थी
    विश्रांति ही अंतिम आधार।
    आलंबन वसुधा की छाती
    लिए अंबक आँसू की धार।
    पाहन सी फिर हुई अड़ोला
    गोद उठा भू प्रीत निभाये।।
    सोचती हूँ अब तो धरा भी कई जानकियों के दर्द को अनसुना कर रही हैंं...काश अब भी धरा यूँ ही अपनी गोद ले ले तड़पती अबलाओं को...
    बहुत ही हृदयस्पर्शी नवगीत......।
    🙏🙏🙏🙏🙏

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  4. वाह!कुसुम जी ,सुंदर शब्दों में जानकी की वेदना का चित्रण किया है आपनें । युगों -युगों से नारी जाति अग्नि परीक्षा देती आ रही है ,चाहे वो जानकी हो या साधारण नारी ...।

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  5. गूंजा एक निश्चल प्रतिकार
    सिसका निसर्ग भीगे लोचन
    संतप्त मन का हाहाकार
    फूट गया बन दारुण क्रदंन्
    आज जानकी विहल हृदय से
    अवसर्ग मांगे क्षिति भिगोये ।।
    बेहद हृदयस्पर्शी नवगीत सखी 👌

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  6. वाह बहुत सुंदर रचना सखी।

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  7. जानकी की वेदना के स्वर में निहित स्त्री व्यथा का मार्मिक चित्रण है दी।जब बहुत कुछ कहना होता है शब्द मौन हो जाते है।
    मर्मस्पर्शी सृजन दी।

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