Thursday, 4 June 2020

वृक्ष संज्ञान

वृक्ष का संज्ञान

माँ को काट दोगे!
माना जन्म दाता नही हूं,
पर पाला तुम्हे प्यार से
ठंडी छांव दी, प्राण वायु दी,
फल दिये,
पंछीओं को बसेरा दिया,
कलरव उनका सुन खुश होते सदा‌।
ठंडी बयार का झोंका
जो मूझसे लिपट कर आता
अंदर तक एक शीतलता भरता
तेरे पास के सभी प्रदुषण को
निज में शोषित करता
हां काट दो बुड्ढा भी हो गया हूं,
रुको!! क्यों काट रहे बताओगे?
लकडी चहिये हां तुम्हे भी पेट भरना है,
काटो पर एक शर्त है,
एक काटने से पहले
कम से कम दस लगाओगे।
ऐसी जगह कि फिर किसी
 विकास की भेट ना चढूं मै
समझ गये तो रखो कुल्हाड़ी,
पहले वृक्षारोपण करो
जब वो कोमल सा विकसित होने लगे
मुझे काटो मैं अंत अपना भी
तुम पर बलिदान करुंगा‌ ।
तुम्हारे और तुम्हारे नन्हों की
आजीविका बनूंगा।
और तुम मेरे नन्हों को संभालना
कल वो तुम्हारे वंशजों को जीवन देगें।
आज तुम गर नई पौध लगाओगे
कल तुम्हारे वंशज
फल ही नही जीवन भी पायेंगे।

      कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

एक पेड काटने वालों पहले दस पेड़ लगाओ फिर हाथ में आरी उठाओ।।

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर।
    पर्यावरण दिवस की बधाई हो।

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  2. बहुत अच्छी संदेश प्रद रचना दीदी.. 👌 👌 👌 👌 प्रकृति नहीं बची तो इंसान का अस्तित्व भी खतरे में ही है

    ओ चित्रकार

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