Sunday, 28 June 2020

दीन हीन

दीन हीन

चुल्हा ठंड़ा उदर अनल है
दिवस गया अब रात हुई ।
आँखें जलती नींद नही अब
अंतड़ियां आहात हुई ।

सब पीड़ा से क्षुदा बड़ी है
घर भुमि परिवार छुड़ाया
माता पिता सखा सब छुटे
माटी का मोह भुलाया।
अपनी जड़ें उखाड़ी पौध
स्वाभिमान पर घात हुई।।

एकाकीपन शूल भेदता
हृदय टूट कर तार हुआ
सुधी लेने आयेगा कौन
जीवन ही अब भार हुआ
कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये
कंटक की बरसात हुई।

पर पीड़ा को देखें कैसे
अपनी ही न संभले जब।
जाने कब छुटकारा होगा
श्वास बँधी पिंजर से कब।
हड्डी ढ़ांचा दिखता तन
शाख सूख बिन पात हुई।।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

24 comments:

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 29 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार , सांध्य दैनिक पर रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।

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  3. सब पीड़ा से क्षुदा बड़ी है
    घर भुमि परिवार छुड़ाया
    माता पिता सखा सब छुटे
    माटी का मोह भुलाया।....वाह कुसुम जी, क्या खूब ल‍िखा... दीन हीनों की सारी पीड़ा उड़ेल दी आपने इन पंक्त‍ियों में

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    1. रचना का मर्म स्पष्ट करती आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ और लेखनी को उर्जा मिली।
      सादर आभार अलकनंदा जी।

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  4. चुल्हा ठंड़ा उदर अनल है
    दिवस गया अब रात हुई ।
    आँखें जलती नींद नही अब
    अंतड़ियां आहात हुई ।
    बहुत ही मार्मिक सृजन कुसुम जी ,सादर नमन

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय कामिनी जी।
      आपकी मोहक टिप्पणी से रचना मुखरित हुई।

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  5. पर पीड़ा को देखें कैसे
    अपनी ही न संभले जब।
    जाने कब छुटकारा होगा
    श्वास बँधी पिंजर से कब।
    बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार ज्योति बहन ।
      उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया आपकी।

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  6. एकाकीपन शूल भेदता
    हृदय टूट कर तार हुआ
    सुधी लेने आयेगा कौन
    जीवन ही अब भार हुआ
    कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये
    कंटक की बरसात हुई।
    ...
    मर्मस्पर्शी बेहद सुंदर गीत दी।
    सादर।

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार श्वेता।
      आपकी स्नेहासिक्त प्रतिक्रिया से मन प्रसन्न हुआ।
      सस्नेह।

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  7. सब पीड़ा से क्षुधा बड़ी है
    घर भूमि परिवार छुड़ाया
    माता पिता सखा सब छूटे
    माटी का मोह भुलाया।
    आजीविका के लिए अन्यत्र बसे लोगों की व्यथा का हृदयस्पर्शी वर्णन । मर्मस्पर्शी गीत ।

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी आपकी मर्म स्पष्ट करती सुंदर व्याख्यात्मक टिप्पणी से रचना सार्थक हुई,और लेखन को नव ऊर्जा।

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  8. एकाकीपन शूल भेदता
    हृदय टूट कर तार हुआ
    सुधी लेने आयेगा कौन
    जीवन ही अब भार हुआ
    कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये
    कंटक की बरसात हुई।
    बेहद हृदयस्पर्शी रचना सखी

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    1. बहुत बहुत आभार सखी ।
      आपकी मोहक टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।

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  9. अंतस को झग्झोरता मार्मिक सृजन आदरणीय दीदी.जीवन की जटिलता का यथार्थ चित्रण .
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय अनिता आपकी स्नेह से भरी सुंदर प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।

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  10. पर पीड़ा को देखें कैसे
    अपनी ही न संभले जब।
    जाने कब छुटकारा होगा
    श्वास बँधी पिंजर से कब।
    हड्डी ढ़ांचा दिखता तन
    शाख सूख बिन पात हुई।।
    बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब नवगीत।

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    1. बहुत आभार आपका सुधा जी ।
      आपकी प्रतिक्रिया संदेश उत्साहवर्धक होती है।
      सस्नेह।

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  11. बहुत बहुत आभार आपका।
    मैं चर्चा मंच पर जरूर उपस्थित रहूंगी।
    चर्चा मंच पर रचना को शामिल करना सदा सुखद अहसास है।

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  12. सब पीड़ा से क्षुदा बड़ी है
    घर भुमि परिवार छुड़ाया
    माता पिता सखा सब छुटे
    माटी का मोह भुलाया।
    अपनी जड़ें उखाड़ी पौध
    स्वाभिमान पर घात हुई।।
    प्रिय कुसुम बहन, शोषित और अभावों से जूझते वर्ग की जीवंत कथा को सुंदर ढंग से लिखा आपने 👌👌👌👌
    हार्दिक शुभकामनायें और अम्भार 🌹🌹🙏🌹🌹

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  13. सब पीड़ा से क्षुदा बड़ी है

    बहुत ही हृदयस्पर्शी, मार्मिक सृजन
    सादर।


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  14. सब पीड़ा से क्षुदा बड़ी है
    घर भुमि परिवार छुड़ाया
    मार्मिक अभिव्यक्ति

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