Followers

Monday, 13 July 2020

धरा नवेली

नवेली धरा

दुल्हन सा विन्यास विभूषण
नंदन वन सी धरा नवेली।

कैसे बात कहूँ अंतस की
थिरक हृदय में थिक-थिक उमड़ी।
घटा देख कर मोर नाचता
हिय हिलोर सतरंगी घुमड़ी।
लगता कोई आने वाला
सखी कौन है बूझ पहेली।।

पद्म खिले पद्माकर महका
मधुकर मधु के मटके फोड़े।
सखी सुमन सौरभ मन भाई
पायल पल पल बंधन तोड़े।
कोयल कूकी ऊंची डाली
बोल बोलती मधुर सहेली।।

अंग अंग अब नाच नाचता
आज पिया  की पाती आई।
मन महका तो फूला मधुबन
मंजुल मोहक ऋतु मनभाई
उपवन उपजे भांत भांत रस
चंद्रमल्लिका और चमेली।।

कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'

20 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 14 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका मुखरित मौन पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

      Delete
  3. अंग अंग अब नाच नाचता
    आज पिया की पाती आई।
    मन महका तो फूला मधुबन
    मंजुल मोहक ऋतु मनभाई
    बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार ज्योति बहन आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।

      Delete
  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-07-2020) को     "बदलेगा परिवेश"   (चर्चा अंक-3763)     पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय। मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

      Delete

  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 15 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका पम्मी जी अवश्य उपस्थित रहूंगी ‌।
      सस्नेह।

      Delete
  6. कैसे बात कहूँ अंतस की
    थिरक हृदय में थिक-थिक उमड़ी।
    घटा देख कर मोर नाचता
    हिय हिलोर सतरंगी घुमड़ी।
    लगता कोई आने वाला
    सखी कौन है बूझ पहेली।।
    वाह

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      उत्साहवर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया के लिए।
      सादर

      Delete
  7. वाह!कुसुम जी ,सुंदर भावों से सजी ,सुंदर रचना ।

    ReplyDelete
  8. आदरणीया मैम,
    आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ।
    कविता पढ़ कर बहुत आनंद आया।
    प्रकृति का बहुत सुंदर वर्णन। ऋतु और हृदय के भावों के बीच सुंदर तालमेल।

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  10. --
    दुल्हन सा विन्यास विभूषण
    नंदन वन सी धरा नवेली।

    सावन की रिमझिम फुहार सी बहुत ही सुंदर सृजन कुसुम जी,सादर नमन

    ReplyDelete
  11. पद्म खिले पद्माकर महका
    मधुकर मधु के मटके फोड़े।
    सखी सुमन सौरभ मन भाई
    पायल पल पल बंधन तोड़े।
    कोयल कूकी ऊंची डाली
    बोल बोलती मधुर सहेली।।
    वाह बहुत ही मनभावन रचना 👌👌👌👌

    ReplyDelete