नवेली धरा
दुल्हन सा विन्यास विभूषण
नंदन वन सी धरा नवेली।
कैसे बात कहूँ अंतस की
थिरक हृदय में थिक-थिक उमड़ी।
घटा देख कर मोर नाचता
हिय हिलोर सतरंगी घुमड़ी।
लगता कोई आने वाला
सखी कौन है बूझ पहेली।।
पद्म खिले पद्माकर महका
मधुकर मधु के मटके फोड़े।
सखी सुमन सौरभ मन भाई
पायल पल पल बंधन तोड़े।
कोयल कूकी ऊंची डाली
बोल बोलती मधुर सहेली।।
अंग अंग अब नाच नाचता
आज पिया की पाती आई।
मन महका तो फूला मधुबन
मंजुल मोहक ऋतु मनभाई
उपवन उपजे भांत भांत रस
चंद्रमल्लिका और चमेली।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
दुल्हन सा विन्यास विभूषण
नंदन वन सी धरा नवेली।
कैसे बात कहूँ अंतस की
थिरक हृदय में थिक-थिक उमड़ी।
घटा देख कर मोर नाचता
हिय हिलोर सतरंगी घुमड़ी।
लगता कोई आने वाला
सखी कौन है बूझ पहेली।।
पद्म खिले पद्माकर महका
मधुकर मधु के मटके फोड़े।
सखी सुमन सौरभ मन भाई
पायल पल पल बंधन तोड़े।
कोयल कूकी ऊंची डाली
बोल बोलती मधुर सहेली।।
अंग अंग अब नाच नाचता
आज पिया की पाती आई।
मन महका तो फूला मधुबन
मंजुल मोहक ऋतु मनभाई
उपवन उपजे भांत भांत रस
चंद्रमल्लिका और चमेली।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 14 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मुखरित मौन पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
Deleteअंग अंग अब नाच नाचता
ReplyDeleteआज पिया की पाती आई।
मन महका तो फूला मधुबन
मंजुल मोहक ऋतु मनभाई
बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।
बहुत बहुत आभार ज्योति बहन आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-07-2020) को "बदलेगा परिवेश" (चर्चा अंक-3763) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय। मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
Deleteसादर।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 15 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार आपका पम्मी जी अवश्य उपस्थित रहूंगी ।
Deleteसस्नेह।
कैसे बात कहूँ अंतस की
ReplyDeleteथिरक हृदय में थिक-थिक उमड़ी।
घटा देख कर मोर नाचता
हिय हिलोर सतरंगी घुमड़ी।
लगता कोई आने वाला
सखी कौन है बूझ पहेली।।
वाह
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साहवर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया के लिए।
सादर
बहुत सुंदर लाड़ो
ReplyDeleteबहुत सुंदर लाड़ो
ReplyDeleteवाह!कुसुम जी ,सुंदर भावों से सजी ,सुंदर रचना ।
ReplyDeleteआदरणीया मैम,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ।
कविता पढ़ कर बहुत आनंद आया।
प्रकृति का बहुत सुंदर वर्णन। ऋतु और हृदय के भावों के बीच सुंदर तालमेल।
बहुत सुन्दर
ReplyDelete--
ReplyDeleteदुल्हन सा विन्यास विभूषण
नंदन वन सी धरा नवेली।
सावन की रिमझिम फुहार सी बहुत ही सुंदर सृजन कुसुम जी,सादर नमन
पद्म खिले पद्माकर महका
ReplyDeleteमधुकर मधु के मटके फोड़े।
सखी सुमन सौरभ मन भाई
पायल पल पल बंधन तोड़े।
कोयल कूकी ऊंची डाली
बोल बोलती मधुर सहेली।।
वाह बहुत ही मनभावन रचना 👌👌👌👌
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteसुंदर रचना
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