मेघ का अनुराग
घुमड़ता मेघ, मल्हार गा रहा,
मदमाती बूंदों का श्रृंगार गा रहा।
सरसती धरा का प्यार गा रहा,
खिलते फूलों का अनुराग गा रहा।
कलियों का सोलह श्रृंगार गा रहा,
गुंचा-गुंचा महकती नज्में गा रहा।
रुत का खिलता अरमान गा रहा,
पपीहरा मीठी सी राग गा रहा।
मन मोर ठुमक-ठुमक नाच गा रहा,
नदियों का कल कल राग गा रहा।
मदमाता सावन फूहार गा रहा,
भीना सरस रस काव्य गा रहा।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।
घुमड़ता मेघ, मल्हार गा रहा,
मदमाती बूंदों का श्रृंगार गा रहा।
सरसती धरा का प्यार गा रहा,
खिलते फूलों का अनुराग गा रहा।
कलियों का सोलह श्रृंगार गा रहा,
गुंचा-गुंचा महकती नज्में गा रहा।
रुत का खिलता अरमान गा रहा,
पपीहरा मीठी सी राग गा रहा।
मन मोर ठुमक-ठुमक नाच गा रहा,
नदियों का कल कल राग गा रहा।
मदमाता सावन फूहार गा रहा,
भीना सरस रस काव्य गा रहा।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।
बेहतरीन नज्म।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteशानदार कविता
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteआ कुसुम कोठारी जी, नमस्ते ! बहुत सुन्दर नज्म ! आपकी सूक्ष्म रचनधर्मिता के दर्शन होते हैं। --ब्रजेन्द्र नाथ
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteमदमाता सावन फूहार गा रहा,
ReplyDeleteभीना सरस रस काव्य गा रहा।।
बहुत सुंदर मेघगीत ,सादर नमन आपको
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
Deleteसावन में आपका यह गीत मन को बहुत भा गया ।
ReplyDeleteढेर सा स्नेह बहना।
Deleteसादर आभार आपका, मेरी रचना को चर्चा मंच पर शामिल करने केलिए।
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