Thursday, 9 July 2020

मेघ का अनुराग

मेघ का अनुराग

घुमड़ता मेघ, मल्हार गा रहा,
मदमाती बूंदों का श्रृंगार गा रहा।
सरसती धरा का प्यार गा रहा,
खिलते फूलों का अनुराग गा रहा।
कलियों का सोलह श्रृंगार गा रहा,
गुंचा-गुंचा महकती नज्में गा रहा।
रुत का खिलता अरमान गा रहा,
पपीहरा  मीठी  सी राग गा  रहा।
मन मोर ठुमक-ठुमक नाच गा रहा,
नदियों का कल कल राग गा रहा।
मदमाता  सावन  फूहार गा रहा,
भीना सरस रस काव्य गा रहा।।

           कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।

13 comments:

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  2. शानदार कविता

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    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।

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  3. बहुत बढ़िया

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।

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  4. आ कुसुम कोठारी जी, नमस्ते ! बहुत सुन्दर नज्म ! आपकी सूक्ष्म रचनधर्मिता के दर्शन होते हैं। --ब्रजेन्द्र नाथ

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।

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  5. मदमाता सावन फूहार गा रहा,
    भीना सरस रस काव्य गा रहा।।
    बहुत सुंदर मेघगीत ,सादर नमन आपको

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।

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  6. सावन में आपका यह गीत मन को बहुत भा गया ।

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  7. सादर आभार आपका, मेरी रचना को चर्चा मंच पर शामिल करने केलिए।

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