त्रिवेणी गंगा यमुना सरस्वती ।
न मैं गंगा न ही यमुना
मैं बस लुप्त सुसुप्त
सरस्वती रहना चाहती हूंँ।
एक अदृश्य धार
बन बहना चाहती हूँ।
आँख की नमी
मिट्टी की सीलन
बनना चाहती हूँ
न मैं दृश्या
न ऊंचाई
न कल-कल बहना
चाहती हूँ।
मैं धरा पर हर समय
अहसास बन
रहना चाहती हूँ।
मैं लुप्त सुसुप्त सरस्वती
बनना चाहती हूँ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
न मैं गंगा न ही यमुना
मैं बस लुप्त सुसुप्त
सरस्वती रहना चाहती हूंँ।
एक अदृश्य धार
बन बहना चाहती हूँ।
आँख की नमी
मिट्टी की सीलन
बनना चाहती हूँ
न मैं दृश्या
न ऊंचाई
न कल-कल बहना
चाहती हूँ।
मैं धरा पर हर समय
अहसास बन
रहना चाहती हूँ।
मैं लुप्त सुसुप्त सरस्वती
बनना चाहती हूँ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
मैं धरा पर हर समय
ReplyDeleteअहसास बन
रहना चाहती हूँ। वाह! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी।
सारगर्भित रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.7.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय दी।
ReplyDeleteसादर
सारगर्भित रचना
ReplyDeleteमैं धरा पर हर समय
ReplyDeleteअहसास बन
रहना चाहती हूँ।
मैं लुप्त सुसुप्त सरस्वती
बनना चाहती हूँ।।
बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।
एक अदृश्य धार
ReplyDeleteबन बहना चाहती हूँ।
आँख की नमी
मिट्टी की सीलन
बनना चाहती हूँ
न मैं दृश्या
न ऊंचाई
न कल-कल बहना
चाहती हूँ।
सरस्वती नदी लुप्त सुसुप्त होकर भी पूजनीय है गंगा यमुना के साथ त्रिवेणी बनाती है
सरस्वती की महानता व्यक्त करती बहुत ही लाजवाब रचना।
वाह!!!
waah bahut khub
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