Tuesday, 28 July 2020

सरस्वती एक अहसास

त्रिवेणी गंगा यमुना सरस्वती ।

न मैं गंगा न ही यमुना
मैं बस लुप्त सुसुप्त
सरस्वती रहना चाहती हूंँ।
एक अदृश्य धार
बन बहना चाहती हूँ।
आँख की नमी
मिट्टी की सीलन
बनना चाहती हूँ‌
न मैं दृश्या
न ऊंचाई
न कल-कल बहना
चाहती हूँ।
मैं धरा पर हर समय
अहसास बन
रहना चाहती हूँ।
मैं लुप्त सुसुप्त सरस्वती
बनना चाहती हूँ।।

       कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

9 comments:

  1. मैं धरा पर हर समय
    अहसास बन
    रहना चाहती हूँ। वाह! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.7.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय दी।
    सादर

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  4. सारगर्भित रचना

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  5. मैं धरा पर हर समय
    अहसास बन
    रहना चाहती हूँ।
    मैं लुप्त सुसुप्त सरस्वती
    बनना चाहती हूँ।।
    बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।

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  6. एक अदृश्य धार
    बन बहना चाहती हूँ।
    आँख की नमी
    मिट्टी की सीलन
    बनना चाहती हूँ‌
    न मैं दृश्या
    न ऊंचाई
    न कल-कल बहना
    चाहती हूँ।
    सरस्वती नदी लुप्त सुसुप्त होकर भी पूजनीय है गंगा यमुना के साथ त्रिवेणी बनाती है
    सरस्वती की महानता व्यक्त करती बहुत ही लाजवाब रचना।
    वाह!!!

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