Sunday, 26 July 2020

सावन का मृदु हास

सावन का मृदु हास

शाख शाख बंधा हिण्डोला
ऋतु का तन भी खिला खिला

रंग बिरंगी लगे कामिनी
बनी ठनी सी चमक रही
परिहास हास में डोल रही
खुशियाँ आनन दमक रही
डोरी थामें चहक रही है
सारी सखियाँ हाथ मिला।।

रेशम रज्जू फूल बंधे हैं
मन पर छाई तरुणाई
आँखे चपला चपल बनी
गाल लाज की अरुणाई
मीठे स्वर में  कजरी  गाती
कण कण को ही गयी जिला।।

मेघ घुमड़ते नाच रहे हैं
प्रवात पायल झनक रही
सरस धार से पानी बरसा
रिमझिम बूँदें छनक रही
ऐसे मधुरिम क्षण जीवन को
सुधा घूंट ही गयी पिला ।।

कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'

32 comments:

  1. बेहतरीन रचना । हार्दिक बधाई ।

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    1. आत्मीय आभार आपका ,प्रोत्साहन मिला।
      सादर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  3. आपने कजरी और रेशम रज्जु का ज‍िसतरह प्रयोग क‍िया वह अद्भुत है कुसुम जी, बहुत खूब

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    1. वाह अलकनंदा जी आपकी मोहक टिप्पणी रचना का मान बढ़ाती सी ,मन में हर्ष भर गई।
      सस्नेह।

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार ज्योति बहन।
      सस्नेह।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  7. सावन के मौसम की चाल कुछ ऐसी होती है ...
    हर मन झूमता है ... बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना है ...

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    1. वाह मोहक टिप्पणी आदरणीय नासवा जी उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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  8. रेशम रज्जू फूल बंधे हैं
    मन पर छाई तरुणाई
    आँखे चपला चपल बनी
    गाल लाज की अरुणाई
    मीठे स्वर में कजरी गाती
    कण कण को ही गयी जिला। बहुत सुंदर मनभावन रचना सखी 👌

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    1. वाह सखी मन खुश हुआ सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया से।
      सस्नेह ।

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  9. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 28 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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    1. बहुत बहुत आभार आपका , पांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए। मैं उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  10. बहुत सुंदर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      प्रोत्साहन देती सार्थक प्रतिक्रिया ।
      सादर।

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  11. उम्दा ! यही वह समय है जब नभ से अमृत बरसता है

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    1. जी बहुत सही! रचना के समानांतर सुंदर भाव प्रेसित करती सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार।
      सादर।

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  12. आदरणीया मैम,
    बहुत ही सुंदर सावन के उत्सव का वर्णन करती आपकी कविता मन में आनंद और उत्सव का उल्लास भर देती है।
    वर्षा ऋतु जब भी आती है तो धरती का कण कण हर्षित लगने लगता है। सुंदर रचना के लिए आभार।
    एक अनुरोध और, कृपया मेरे भी ब्लॉग पर आएं जहाँ मैं अपनी कवितायें डालती हूँ। kavyatarang ini.blogspot.com

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    1. वाह अनंता जी सुंदर! व्याख्यात्मक टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ। आपका ब्लाग पर बहुत बहुत स्वागत है।
      सस्नेह।
      आपके ब्लॉग पर दो बार जा कर आ चुंकि हूं बहुत सुंदर सृजन है आपका और अब निरन्तर आना लगा रहेगा।
      सस्नेह आभार।

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  13. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (29-07-2020) को     "कोरोना वार्तालाप"   (चर्चा अंक-3777)     पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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    1. जी आभार आपका आदरणीय, चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  14. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      मेरे ब्लाग पर आपका सहर्ष स्वागत है।
      सस्नेह।

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  15. जी आभार आदरणीय रचना को सार्थकता मिली।
    सादर।

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  16. रेशम रज्जू फूल बंधे हैं
    मन पर छाई तरुणाई
    आँखे चपला चपल बनी
    गाल लाज की अरुणाई
    मीठे स्वर में कजरी गाती
    कण कण को ही गयी जिला।
    बहुत ही मनभावन लाजवाब नवगीत लिखा है आपने कुसुम जी! अद्भुत शब्दसंयोजन के साथ...
    वाह!!!!

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  17. आ कुसुम कोठारी जी, बहुत अच्छी नवगीत की रचना! लाजवाब पांक्तियाँ:
    रेशम रज्जू फूल बंधे हैं
    मन पर छाई तरुणाई
    आँखे चपला चपल बनी
    गाल लाज की अरुणाई
    मीठे स्वर में कजरी गाती
    कण कण को ही गयी जिला।।
    --ब्रजेन्द्रनाथ

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  18. बहुत ही सुंदर रचा है नवगीत आपने आदरणीय दी।
    सादर

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