Saturday, 25 July 2020

बरसात एक परिदृश्य

बरसात

बादल उमड़-घुमड़ कर आते
घटा घोर नीले नभ छाती
दामिनी दम-दम दमकती
मन मे सिहरन सी भरती ।

कभी सरस कभी तांडव सी
बरखा की रुत आती
कभी हरित धरा मुस्काती
 जल में कभी मग्न हो जाती ।

कृषक मन ही मन मुस्काते
चेहरे उनके खिल-खिल जाते
हल की फलक चीर कर
धरा को दाना पानी देते ।

बागों मे बहारें आती
डालियाँ फूलों से लद जाती
पपीहा पी की राग सुनाता
कोयल मीठे स्वर में गाती ।

सावन की घटा घिर आती
झरनों में रवानी  आती
नदिया कल-कल स्वर में गाती
ऋतु गोरी मृदुल मदमाती ।

चांद तारे कहीं छुप जाते
श्यामक शावक धूम मचाते
उड़-उड़ पर्वत से टकराते
झम-झम-झम पानी बरसाते ।

      कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 जुलाई 2020 को साझा की गयी है.......http://halchalwith5links.blogspot.com/ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह!बरसात पर शानदार सृजन ।
    कृषक मन ही मन मुस्काते
    चेहरे उनके खिल-खिल जाते
    हल की फलक चीर कर
    धरा को दाना पानी देते ..जीवन का साकार चित्रण आँखों के सामने उभर आया ।बेहतरीन 👌

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  3. बेहतरीन सृजन सखी।बहुत सुंदर।

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  4. सुंदर अभिव्यक्ति

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