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Saturday, 1 August 2020

पदचिन्ह



विरानों में पदचिन्ह

विराने समेटे कितने पदचिन्ह
अपने हृदय पर अंकित घाव
जाता हर पथिक छोड छाप
अगनित कहानियां दामन में
जाने अन्जाने राही छोड जाते
एक अकथित सा अहसास
हर मौसम गवाह बनता जाता
बस कोई फरियादी ही नही आता
खुद भी साथ चलना चाहते हैं
पर बेबस वहीं पसरे रह जाते हैं
कितनो को मंजिल तक पहुंचाते
खुद कभी भी मंजिल नही पाते
कभी किनारों पर हरित लताऐं झूमती
कभी शाख से बिछडे पत्तों से भरती
कभी बहार , कभी बेरंग मौसम
फिर भी पथिक निरन्तर चलते
नजाने कब अंत होगा इस यात्रा का
यात्री बदलते  रहते निरन्तर
राह रहती चुप शांत बोझिल सी।

विराने समेटे..
             कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 03 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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