रात सदा रात होती है।
रोशनी होना ही तो दिन नही है
रात सदा रात होती है,
चाहे चंद्रमा अपने शबाब पर हो
प्रकाश की अनुपस्थिति अँधेरा है,
पर प्रकाश होना भर ही रात का अंत नही होता ।
निशा का गमन सूरज के आगमन से होता है ।
कृत्रिम रोशनी या चाँद का प्रकाश
अँधेरे दूर करते हैं रात नही।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteबेहतरीन..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteरात मन के अन्दर न रहे तो भी दिन ही होता है ... रात प्रकाश का विश्राम भी होता अहि और अन्धकार का स्वराज भी ...
ReplyDeleteअच्छी रचना ..
सुंदर व्याख्या सुंदर भावार्थ रचना को प्रवाह मिला ।
Deleteसादर आभार आपका नासवा जी ।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसुंदर रचना....
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय! चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
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