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Monday, 24 August 2020

प्रारब्ध

 प्रारब्ध


चंचल चाँद रजत का पलना 

 मंदाकिनी गोद में सोता ।


राह निहारे एक चकोरी  

कब अवसान दिवस का होगा

बस देखना प्रारब्ध ही था

सदा विरह उसने है भोगा

पलक पटल पर घूम रहा है

एक स्वप्न आधा नित रोता।।


विधना के हैं खेल निराले 

कोई इनको कब जान सका

जल में डोले शफरी प्यासी 

सुज्ञानी  ही पहचान सका

है भेद कर्म गति के अद्भुत 

वही काटता जो है बोता।।


सागर से आता जल लेकर 

बादल फिरता मारा मारा‌

लेकिन पानी रोक न पाता

चोट झेलता है बेचारा

प्रहार खाकर मेघ बरसता 

बार बार खाली वो होता।‌


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'


21 comments:

  1. बहुत सुंदर नवगीत सखी 👌

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    1. बहुत बहुत स्नेह आभार आपका सखी, रचना मुखरित हुई।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (26-08-2020) को   "समास अर्थात् शब्द का छोटा रूप"   (चर्चा अंक-3805)   पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, चर्चा मंच पर रचना का शामिल होना सदा मेरे लिए गर्व का विषय है मेरे लिए मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 25 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सांध्य दैनिक में अपनी रचना के लिए हृदय तल से आभार।
      मैं उपस्थित रहूंगी।

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  4. निशब्द दी सराहना से परे मन को छूता बहुत ही सुंदर नवगीत।
    अंतस में एक टीस छोड़ता लाजवाब।
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार अनिता विषय पर आत्मीय टिप्पणी विषय के भाव मुखरित करती है ।
      सस्नेह।

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  5. प्रारब्ध होगा तो अंत भी होगा ... प्राकृति यही कहती है ...
    हर मन की टीस निकल जाती है ... समय करता है सब ...

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    1. वाह नासवा जी व्याख्यात्मक टिप्पणी सदा एक उर्जा का संचार करती है रचनाकार में, सुंदर प्रतिक्रिया।
      ढेर सारा आभार।
      सादर।

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  6. शुद्ध हिन्दी की सुंदर कविता।

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    1. बहुत सा आभार आपकी विहंगम दृष्टि का ।
      सादर।

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  7. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।

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  8. बहुत बढ़िया

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    1. बहुत बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धन हुआ।

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  9. सराहनीय अभिव्यक्ति। हार्दिक आभार ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      आपकी सार्थक टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सादर।

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  10. वाह !कोठरी कुसुम बेटेजी कविता ने शिखर छू लिए:

    विधना के हैं खेल निराले
    कोई इनको कब जान सका

    जल में डोले शफरी प्यासी

    सुज्ञानी ही पहचान सका

    है भेद कर्म गति के अद्भुत

    वही काटता जो है बोता।।


    blogpaksh.blogspot.com

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