जन्म दिवस तो नंद लाल का
हर वर्ष हम मनाते हैं,
पर वो निष्ठुर यशोदानंदन
कहां धरा पर आते हैं ,
भार बढ़ा है अब धरणी का
पाप कर्म इतराते हैं,
वसुधा अब वैध्व्य भोगती
कहां सूनी मांग सजाते हैं,
कण कण विष घुलता जाता
संस्कार बैठ लजाते हैं,
गिरावट की सीमा टूटी
अधर्म की पौध उगाते हैं,
विश्वास बदलता जाए छल में
धोखे की धूनी जलाते हैं,
मान अपमान की बेड़ी टूटी
लाज छोड़ भरमाते हैं,
नैतिकता और सदाचार का
फूटा ढ़ोल बजाते हैं,
शरम हया के गहने को
बीते युग की बात बताते हैं,
चीर द्रोटदी का अब छोटा
दामोदर कहां बढ़ाते हैं,
काम बहुत ही टेढ़ा अब तो
भरे सभी के खाते हैं,
सर्वार्थ लोलुपता ऐसी फैली
भूले रिश्ते और नाते हैं,
ढोंग फरेब का जाल बिछा
झुठी भक्ति जतलाते हैं,
मंच चढ़े और हाथ में माइक
शान में बस इठलाते हैं,
त्रसित है जग सारा अब तो
दर्द की चरखी काते है
आ जाओ करूणानिधि
अब हाथ जोड़ बुलाते हैं ।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
शानदार|
ReplyDeleteआपको श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
बहुत सुन्दर ,सुरुचिपूर्ण और भावपूर्ण रचना । सराहनीय प्रस्तुतिकरण । हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteश्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना सखी श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteकब और कैसे आ जाये हैं यशोदा नंदन ये कोई जान ले तो वो योगिराज कहाँ के ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लाजवाब भावपूर्ण रचना ... श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ....