हृदय में लिये बैठी थी
एक आस का मोती,
सींचा अपने वजूद से,
दिन रात हिफाजत की
सागर की गहराईयों में,
जहाँ की नजरों से दूर,
हल्के-हल्के लहरों के
हिण्डोले में झूलाती,
साँसो की लय पर
मधुरम लोरी सुनाती
पोषती रही सीप
अपने हृदी को प्यार से
मोती धीरे-धीरे
शैशव से निकल
किशोर होता गया,
सीप से अमृत पान
करता रहा तृप्त भाव से
अब यौवन मुखरित था
सौन्दर्य चरम पर था
आभा ऐसी की जैसे
दूध में चंदन दिया घोल
एक दिन सीप
एक खोजी के हाथ में
कुनमुना रही थी
अपने और अपने अंदर के
अपूर्व को बचाने
पर हार गई उसे
छेदन भेदन की पीडा मिली
साथ छूटा प्रिय हृदी का
मोती खुश था बहुत खुश
जैसे कैद से आजाद
जाने किस उच्चतम
शीर्ष की शोभा बनेगा
उस के रूप पर
लोग होंगे मोहित
प्रशंसा मिलेगी
हर देखने वाले से
उधर सीपी बिखरी पड़ी थी
दो टुकड़ों में
कराहती रेत पर असंज्ञ सी
अपना सब लुटा कर
व्यथा और भी बढ़ गई
जब जाते-जाते
मोती ने एक बार भी
उसको देखा तक नही,
बस अपने अभिमान में
फूला चला गया
सीप रो भी नही पाई
मोती के कारण जान गमाई
कभी इसी मोती के कारण
दूसरी सिपियों से
खुद को श्रेष्ठ मान लिया
हाय क्यों मैंने!!
स्वाति का पान किया ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-08-2020) को "भाँति-भाँति के रंग" (चर्चा अंक-3788) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
कभी इसी मोती के कारण
ReplyDeleteदूसरी सिपियों से
खुद को श्रेष्ठ मान लिया
हाय क्यों मैंने!!
स्वाति का पान किया
बहुत खूब...,बेहतरीन सृजन कुसुम जी ,सादर नमन
बहुत बहुत सा स्नेह आभार कामिनी जी ,आपकी विशिष्ट टिप्पणी रचना को विशिष्ट बना देती है ।
Deleteसस्नेह।
बहुत खूब,बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर नमन
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय, उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका विश्व मोहन जी, उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteमोती की चमक के आगे सीप की व्यथा और उपेक्षा भाव का स्पर्श करती मानव मन में संवेदनशीलता जगाती अनुपम और हृदयस्पर्शी रचना . अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
ReplyDeleteवाह मीना जी आपने रचना के अंतर निहित भावों पर स्पष्ट प्रकाश ड़ाल कर रचना को नया प्रवाह दिया।
Deleteबहुत बहुत सा स्नेह आभार।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 10 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका,पाँचलिको में शामिल होना सदा सुखद ।
Deleteसादर।
दूसरों की व्यथा से आहत होने के लिए कोमल मन और दिव्य दृष्टि की आवश्यकता होती बहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका गगन जी, बहुत सुंदर बात कही आपने, किसी की पीड़ा को महसूस करने के लिए एक कोमल मन बहुत जरूरी है।
Deleteसादर आभार आपका।
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साहवर्धक होती है।
ReplyDeleteसस्नेह।
मर्मस्पर्शी सृजन आदरणीय दी। सीप की ममता बिलख पड़ी वर्तमान माँ के हृदय का मार्मिक चित्रण।सराहना से परे रुपक...
ReplyDeleteलाजवाब सृजन।