एक मिट्टिका का कण बिखरा
ठहर गया था पात अनी
भानु उर्मि उसपर लहराई
चमक रही ज्यों हीर कनी ।
उपवन फूले मदमाए से
ऋतु का रंग चढ़ा भारी
फोड़ गया कोई मतवाला
सुधा भरी गगरी सारी
भीग गई फिर सभी दिशाएं
कुसुमधूलि जो पुहुप जनी।।
श्यामल मधुकर ड़ोल रहा था
मद पीने को भरमाया
पुष्प महकते सौरभ भीनी
उसकी क्यों काली काया
चंचल तितली कलियाँ महकी
आकर्षण का केन्द्र बनी ।।
माटी निखरी धुली धुली सी
दुर्वा लहराई धानी
ऊपर देखा घटा अश्व पर
चढ़कर बैठा सुर मानी
रिमझिम बरसी बरखा रानी
छतरी की फिर ड़ाड़ तनी।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
खूबसूरत नवगीत सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ जुलाई २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार पांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteबहुत सुंदर सृजन, कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ज्योति बहन।
Deleteआपकी टिप्पणी से रचना मुखरित हुई।
सस्नेह।
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसुन्दर और भावप्रवण गीत।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteसादर।
माटी निखरी धुली धुली सी, दुर्वा लहराई धानी, ऊपर देखा घटा अश्व पर, चढ़कर बैठा सुर मानी..........!
ReplyDeleteअद्भुत !!
बहुत बहुत आभार आपका गगन जी, मेरी स्वयं की प्रिय पंक्तियों पर विशेष टिप्पणी से मन प्रसन्न हुआ।
Deleteसादर।
उपवन फूले मदमाए से
ReplyDeleteऋतु का रंग चढ़ा भारी
फोड़ गया कोई मतवाला
सुधा भरी गगरी सारी
भीग गई फिर सभी दिशाएं
कुसुमधूलि जो पुहुप जनी।।
सुंदर सृजन कुसुम जी ,सादर नमन आपको
बहुत बहुत सा स्नेह आभार कामिनी जी ।
Deleteआपकी टिप्पणी सदा मन खुश करती हैं।
जितनी प्रशंसा करो कम होगी..अद्भुत और अनुपम सृजन ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मीना जी आपकी स्नेहसिक्त प्रतिक्रिया रचना के लिए पुरुस्कार हैं ।
Deleteसस्नेह आभार।
बहुत बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धन हुआ।
ReplyDeleteवाह!लाजवाब नवगीत दी ...वर्षा ऋतु का सराहनीय चित्रण किया है आपने।
ReplyDeleteसादर