पथ के दावेदार नहीं हम
राही हैं हम एक राह के
रह गुजर का साथ सभी का
लक्ष्य सभी का एक कहाँ है
चलना है जब साथ समय कुछ
क्यों ना हंसी खुशी से चल दें
कुछ सुन लें, कुछ कह दें,
अपनी भूली बिसरी यादें
इन राहों से कितने गुजरे
डगर वही पर राह नयी हैं।।
पथ के दावेदार नही हम..
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कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (02-09-2020) को "श्राद्ध पक्ष में कीजिए, विधि-विधान से काज" (चर्चा अंक 3812) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत आभार आदरणीय।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी ।
चर्चा मंच पर रचना का आना मेरे लिए गर्व का विषय है।
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ।
अच्छी कृति। पथ के दावेदार नहीं हम।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 3 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार आपका,पाँच लिंक पर रचना को चुनने के लिए आत्मीय आभार।
Deleteमैं पांच लिंक पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
सादर।
आदरणीया कुसुम कोठारी जी, बहुत अच्छी भावनाओं से भरी रचना। इन पंक्तियों को क्या इसतरह लिखकर और भी लयात्मक बनाया जा सकता है?
ReplyDelete"चलना है जब साथ समय कुछ" की जगह
"देना है पर साथ सभी का" बस मन में आया तो लिख दिया। कृपया अन्यथा नहीं लेंगीं। सादर साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ
जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, रचना के गूंथन पर विहंगम दृष्टि के लिए सदा अनुग्रहित रहूंगी।
Deleteआपके सुझाव पर अवश्य विचार करूंगी आदरणीय।
यथा संभव सुधार भी।
सदा स्नेह बनाए रखें।
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteचलना है जब साथ समय कुछ
ReplyDeleteक्यों ना हंसी खुशी से चल दें
कुछ सुन लें, कुछ कह दें,
अपनी भूली बिसरी यादें
सही कहा रह गुजर का साथ सभी का
पर जीवन राह चलते हुए कभी याद नहीं रहता कि एक सफर है ये जीवन कट जायेगा......
वाह!!!
बहुत ही चिन्तनपरक लाजवाब सृजन।
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी आपकी सुंदर सक्रिय प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला,लेखन को नव उर्जा।
Deleteसस्नेह।
बहुत ही सुंदर सृजन, कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ज्योति बहन आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसस्नेह।
चिन्तनपरक व लाजवाब सृजन कुसुम जी । अत्यंत सुन्दर !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteडगर वाही पर राह नई ... सच अहि किपथ का दावेदार तो कोई नहीं हो सकता ... इस्पे गुज़रते हैं सभी ... सबका रहता है ये हिस्सों में ... फिर छूट जाता है जग जैसे ये हिस्सा ...
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