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Saturday, 5 September 2020

वीर उद्यमी

 वीर उद्यमी


उद्यमी सदा निज प्रयत्न से

जय विजय पताका हाथ धरे

पर्वत का सीना चीर वीर

सुरतरंगिणी भू गोद झरे ।।


कौन रोक पाया मारुत को

अपने ही दम पर बहता है 

नही मेघ में क्षमता ऐसी 

सूरज कहाँ छुपा रहता है 

अलबेलों की शान आन का

डंका अंबर तक रोर भरे ।।


तुंग अंगुली धारण करले

शीला खंड वहन कर लाये

तोड़ा आसमान का सीना 

चाँद भूमि को छूकर आये

बाँध उर्मियाँ फिर सागर की 

नलनील सेतु निर्माण करे ।।


लोह पुरुष हुंकार लगाये 

वसुधा थर्रा उठती सारी

टंकार एक जो चाप लगी 

सदृश हुवे दो दो अवतारी

महिमा किसकी लिखे लेखनी

सहस्त्रों वीर क्षिति पर उतरे ।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'


22 comments:

  1. सुन्दर।
    शुभकामनाएं शिक्षक दिवस पर।

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    Replies
    1. जी, बहुत बहुत आभार आपका।
      आपको भी बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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  2. सुन्दर और सारगर्भित।
    शिक्षक दिवस की बहुत-बहुत बधाई हो आपको।

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    Replies
    1. आपको भी बहुत बहुत शुभकामनाएं आदरणीय।
      सादर आभार।

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।

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  4. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार ( 7 सितंबर 2020) को 'ख़ुद आज़ाद होकर कर रहा सारे जहां में चहल-क़दमी' (चर्चा अंक 3817) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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    Replies
    1. जी सादर आभार आपका।
      चर्चा में जरूर उपस्थिति दूंगी ।
      सादर।

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  5. वाह!वीर सर से सराबोर बेहतरीन अभिव्यक्ति।
    प्रत्येक बंद सराहनीय दी।
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय अनिता सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  6. बहुत सुन्दर

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  7. वाह ! बहुत खूब ! उद्यमी मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं।

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    1. सस्नेह आभार आपका मीना जी, उत्साह वर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया।

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  8. उद्यमी सदा निज प्रयत्न से

    जय विजय पताका हाथ धरे

    पर्वत का सीना चीर वीर

    सुरतरंगिणी भू गोद झरे ।।
    वाह!!!
    उद्यमी कुछ भी कर गुजरने की क्षमता रखते हैं
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार सुधा जी , सार्थक सुंदर प्रतिक्रिया से सृजन को उर्जा मिलती है।
      सस्नेह आभार।

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  9. कौन रोक पाया मारुत को

    अपने ही दम पर बहता है

    नही मेघ में क्षमता ऐसी

    सूरज कहाँ छुपा रहता है

    अलबेलों की शान आन का

    डंका अंबर तक रोर भरे ।।

    वाह! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी सुंदर मोहक प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  10. लोह पुरुष हुंकार लगाये
    वसुधा थर्रा उठती सारी
    टंकार एक जो चाप लगी
    सदृश हुवे दो दो अवतारी
    महिमा किसकी लिखे लेखनी
    सहस्त्रों वीर क्षिति पर उतरे ।।
    अंतर्मन में ओज जगाती,बेहतरीन सृजन,सादर नमन कुसुम जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
      सस्नेह ।

      Delete

  11. लोह पुरुष हुंकार लगाये

    वसुधा थर्रा उठती सारी

    टंकार एक जो चाप लगी

    सदृश हुवे दो दो अवतारी

    महिमा किसकी लिखे लेखनी

    सहस्त्रों वीर क्षिति पर उतरे ।।

    बहुत सुंदर कृति....

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  12. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
    ब्लाग स्वागत है आपका।
    सदा आपकी सार्थक टिप्पणी का इंतजार रहेगा।
    सादर।

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  13. कौन रोक पाया मारुत को
    अपने ही दम पर बहता है
    नही मेघ में क्षमता ऐसी
    सूरज कहाँ छुपा रहता है
    ओजपूर्ण भावों से सजी अत्यंत सुन्दर रचना ।

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