वीर उद्यमी
उद्यमी सदा निज प्रयत्न से
जय विजय पताका हाथ धरे
पर्वत का सीना चीर वीर
सुरतरंगिणी भू गोद झरे ।।
कौन रोक पाया मारुत को
अपने ही दम पर बहता है
नही मेघ में क्षमता ऐसी
सूरज कहाँ छुपा रहता है
अलबेलों की शान आन का
डंका अंबर तक रोर भरे ।।
तुंग अंगुली धारण करले
शीला खंड वहन कर लाये
तोड़ा आसमान का सीना
चाँद भूमि को छूकर आये
बाँध उर्मियाँ फिर सागर की
नलनील सेतु निर्माण करे ।।
लोह पुरुष हुंकार लगाये
वसुधा थर्रा उठती सारी
टंकार एक जो चाप लगी
सदृश हुवे दो दो अवतारी
महिमा किसकी लिखे लेखनी
सहस्त्रों वीर क्षिति पर उतरे ।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
सुन्दर।
ReplyDeleteशुभकामनाएं शिक्षक दिवस पर।
जी, बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteआपको भी बहुत बहुत शुभकामनाएं।
सुन्दर और सारगर्भित।
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की बहुत-बहुत बधाई हो आपको।
आपको भी बहुत बहुत शुभकामनाएं आदरणीय।
Deleteसादर आभार।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार ( 7 सितंबर 2020) को 'ख़ुद आज़ाद होकर कर रहा सारे जहां में चहल-क़दमी' (चर्चा अंक 3817) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
जी सादर आभार आपका।
Deleteचर्चा में जरूर उपस्थिति दूंगी ।
सादर।
वाह!वीर सर से सराबोर बेहतरीन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteप्रत्येक बंद सराहनीय दी।
सादर
बहुत बहुत आभार प्रिय अनिता सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह ! बहुत खूब ! उद्यमी मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं।
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका मीना जी, उत्साह वर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया।
Deleteउद्यमी सदा निज प्रयत्न से
ReplyDeleteजय विजय पताका हाथ धरे
पर्वत का सीना चीर वीर
सुरतरंगिणी भू गोद झरे ।।
वाह!!!
उद्यमी कुछ भी कर गुजरने की क्षमता रखते हैं
बहुत ही लाजवाब सृजन।
बहुत बहुत आभार सुधा जी , सार्थक सुंदर प्रतिक्रिया से सृजन को उर्जा मिलती है।
Deleteसस्नेह आभार।
कौन रोक पाया मारुत को
ReplyDeleteअपने ही दम पर बहता है
नही मेघ में क्षमता ऐसी
सूरज कहाँ छुपा रहता है
अलबेलों की शान आन का
डंका अंबर तक रोर भरे ।।
वाह! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी।
बहुत बहुत आभार आपका सखी सुंदर मोहक प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसस्नेह।
लोह पुरुष हुंकार लगाये
ReplyDeleteवसुधा थर्रा उठती सारी
टंकार एक जो चाप लगी
सदृश हुवे दो दो अवतारी
महिमा किसकी लिखे लेखनी
सहस्त्रों वीर क्षिति पर उतरे ।।
अंतर्मन में ओज जगाती,बेहतरीन सृजन,सादर नमन कुसुम जी
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
Deleteसस्नेह ।
ReplyDeleteलोह पुरुष हुंकार लगाये
वसुधा थर्रा उठती सारी
टंकार एक जो चाप लगी
सदृश हुवे दो दो अवतारी
महिमा किसकी लिखे लेखनी
सहस्त्रों वीर क्षिति पर उतरे ।।
बहुत सुंदर कृति....
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteब्लाग स्वागत है आपका।
सदा आपकी सार्थक टिप्पणी का इंतजार रहेगा।
सादर।
कौन रोक पाया मारुत को
ReplyDeleteअपने ही दम पर बहता है
नही मेघ में क्षमता ऐसी
सूरज कहाँ छुपा रहता है
ओजपूर्ण भावों से सजी अत्यंत सुन्दर रचना ।