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Wednesday, 9 September 2020

यादों का पपीहा

 यादों का पपीहा 


शज़र-ए-हयात की शाख़ पर 

कुछ स्याह कुछ संगमरमरी 

यादों का पपीहा। 


खट्टे मीठे फल चखता गीत सुनाता 

उड़-उड़ इधर-उधर फुदकता 

यादों का पपीहा। 


आसमान के सात रंग पंखों में भरता 

सुनहरी सूरज हाथों में थामता 

यादों का पपीहा


चाँद से करता गुफ़्तगू बैठ खिडकी पर 

नींद के बहाने बैठता बंद पलकों पर

यादों का पपीहा।


टुटी किसी डोर को फिर से जोड़ता 

समय की फिसलन पर रपटता 

यादों का पपीहा।


जीवन राह पर छोड़ता कदमों के निशां

निड़र हो उड़ जाता थामने कहकशाँ 

यादों का पपीहा।


              कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'


19 comments:

  1. यादों के पपीहे ... हर बार अलग तरह की अनुभूति देते हैं ...
    बहुत लाजवाब ...

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    1. आत्मीय आभार नासवा जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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  2. चाँद से करता गुफ़्तगू बैठ खिडकी पर

    नींद के बहाने बैठता बंद पलकों पर

    यादों का पपीहा।

    नींद के बहाने बैठता और नींद को कोसों दूर कर देता....
    बस यादें ही यादें....
    बहुत सुन्दर ...लाजवाब सृजन।

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    1. सुधाजी बहुत बहुत आभार, आपकी प्रतिक्रिया से सदा प्रोत्साहन मिलता है ,और नव लेखन की उर्जा भी ।
      सस्नेह।

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  3. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय।
      उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  5. सुंदर प्रस्तुति

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  6. वाह !बेहतरीन दी 👌

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    1. बहुत बहुत स्नेह आभार।

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  7. "चाँद से करता गुफ़्तगू बैठ खिडकी पर
    नींद के बहाने बैठता बंद पलकों पर
    यादों का पपीहा।"

    वाकई बेहतरीन! सराहनीय।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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  8. शज़र-ए-हयात की शाख़ पर

    कुछ स्याह कुछ संगमरमरी

    यादों का पपीहा।

    बहुत ही खूब... द‍िल से न‍िकाला हुआ एक एक लफ्ज़ ...यादों का पपीहा

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अलकनंदा जी सारगर्भित प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

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  9. बहुत बहुत आभार मीना जी चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी।
    सस्नेह।

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  10. बहुत बहुत आभार ज्योति बहन।
    सस्नेह।

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