भावों के चंदन
भावों के चंदन जब महके
पतझर हो जाते मधुबन
स्निग्ध होते पाषाण भी जब
चीर फूटते स्रोत सघन।।
दृग राघव के पंकज सदृश्य
कालिमा में श्याम दिखते
भौरें की गुंजन सरगम सी
पात शयन मुक्ता करते
अनुराग झरता मोद अंतस
सुवासित होता मन चमन।।
तारे तोड़ धरा पर लाता
दिग-दिगंतों में भटकता
आडोलित हो सरि तंरग सा
हर चहक में फिर अटकता
कोरे पृष्ठों पर कोरी सी
नित्य पढ़े कविता ये मन।।
हवा हिण्ड़ोले मेघ रमते
झिलमिलाती दीप मणियाँ
मुकुर सलिल छवि चंदा निरखे
उर्मियों से हीर कणियाँ
बिन आखर शुभ्र श्वेत पन्ने
अभिवृत्तियाँ करती रमन।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'।
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय।
Deleteबहुत सुंदर कलकल छलछल निनाद-सा गुंजित शब्द-निर्झर।
ReplyDeleteआपकी मोहक टिप्पणी से लेखन में उर्जा का संचार हुआ ।
Deleteऔर मेरा उत्साह वर्धन हुआ ।
बहुत बहुत आभार।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 19 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका यशोदा जी ।
Deleteमुखरित मौन पर रचना का होना मेरे लिए उर्जा का संचार है। मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
बहुत-बहुत सुंदर रचना।वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी ।
Deleteब्लाग पर आपकी उपस्थिति से उत्साह वर्धन हुआ।
सस्नेह।
सखी आप की रचनाओं में डूबने का मन करता है
ReplyDeleteआपकी मोहक टिप्पणी से मन प्रसन्न हुआ सखी ,सदा उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया आपकी।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteब्लाग कर आपका सदा स्वागत है।
सादर।
बहुत सारगर्भित सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ।
सादर।
बहुत सुंदर शब्द प्रवाह !!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी ।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया आपकी ।
सस्नेह।
वाह अति सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteमंच पर सदा स्वागत है आपका।
भाव पूर्ण मंत्र मुग्ध करता नवगीत
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह आभार सखी।
Deleteब्लाग पर स्वागत है आपका ।
चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर मनभावन सा लाजवाब नवगीत
ReplyDeleteवाह!!!
बेहद खूबसूरत नवगीत सखी।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति - - नमन सह।
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