तिश्नगी में डूबे रहे राहत को बेक़रार हैं
उजड़े घरौंदें जिनके वे ही तो परेशान हैं ।
रात के क़ाफ़िले चले कौल करके कल का
आफ़ताब छुपा बादलों में क्यों पशेमान है ।
बसा लेना एक संसार नया, परिंदों जैसे
थम गया बेमुरव्वत अब कब से तूफ़ान है ।
आगोश में नींद के भी जागते रहें कब तक
क्या सोच सोच के आखिर अदीब हैरान है ।
शज़र पर चाँदनी पसरी थक हार कर
आसमां पर माहताब क्यों गुमनाम है ।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
पशेमान - लज्जित, शर्मिन्दा।
बेमुरव्वत - सहानुभूतिहीन या अवसरवादी।
अदीब - रचनाकार, कलाकार या साहित्य कार।
वाह 🌻
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हेतु।
Deleteसादर।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-०९-२०२०) को 'पिछले पन्ने की औरतें '(चर्चा अंक-३८३६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteआगोश में नींद के भी जागते रहें कब तक
ReplyDeleteक्या सोच सोच के आखिर अदीब हैरान है ।
उर्दू शब्दों से सजा लाजवाब सृजन
वाह!!!
ढेर सा स्नेह आभार सुधा जी सुंदर सकारात्मक उत्साहित करती प्रतिक्रिया का ।
Deleteशज़र पर चाँदनी पसरी थक हार कर
ReplyDeleteआसमां पर माहताब क्यों गुमनाम है
वाह !! बहुत खूब !!
लाजवाब भावाभिव्यक्ति👌👌
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी सार्थक सुंदर प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह।
बहुत ख़ूब !
ReplyDeleteब्लाग पर आपकी उपस्थिति उत्साहवर्धक और नव उर्जा का प्रवाह है।
Deleteसादर।
ReplyDeleteलाज़बाब अभिव्यक्ति ,सादर नमस्कार कुसुम जी
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
Deleteसार्थक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय
ReplyDeleteशज़र पर चाँदनी पसरी थक हार कर
ReplyDeleteआसमां पर माहताब क्यों गुमनाम है ।
वाह !!!
बहुत भावपूर्ण रचना !!!