Thursday, 24 September 2020

तिश्नगी

 


 


तिश्नगी में डूबे रहे राहत को बेक़रार हैं

उजड़े घरौंदें जिनके वे ही तो परेशान हैं ।


रात के क़ाफ़िले चले कौल करके कल का

आफ़ताब छुपा बादलों में क्यों पशेमान है ।


बसा लेना एक संसार नया, परिंदों जैसे

थम गया बेमुरव्वत अब कब से तूफ़ान है ।


आगोश में नींद के भी जागते रहें कब तक

क्या सोच सोच के आखिर अदीब हैरान है ।


शज़र पर चाँदनी पसरी थक हार कर 

आसमां पर माहताब क्यों गुमनाम है ।


             कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'


पशेमान - लज्जित, शर्मिन्दा। 

बेमुरव्वत - सहानुभूतिहीन  या अवसरवादी।

अदीब - रचनाकार, कलाकार या साहित्य कार।

18 comments:

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    1. जी सादर आभार आपका उत्साह वर्धन हुआ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हेतु।
      सादर।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-०९-२०२०) को 'पिछले पन्ने की औरतें '(चर्चा अंक-३८३६) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. बहुत बहुत आभार।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  5. आगोश में नींद के भी जागते रहें कब तक

    क्या सोच सोच के आखिर अदीब हैरान है ।

    उर्दू शब्दों से सजा लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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    1. ढेर सा स्नेह आभार सुधा जी सुंदर सकारात्मक उत्साहित करती प्रतिक्रिया का ।

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  6. शज़र पर चाँदनी पसरी थक हार कर
    आसमां पर माहताब क्यों गुमनाम है
    वाह !! बहुत खूब !!
    लाजवाब भावाभिव्यक्ति👌👌

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी सार्थक सुंदर प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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    1. ब्लाग पर आपकी उपस्थिति उत्साहवर्धक और नव उर्जा का प्रवाह है।
      सादर।

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  8. लाज़बाब अभिव्यक्ति ,सादर नमस्कार कुसुम जी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
      सार्थक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।

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  9. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय

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  10. शज़र पर चाँदनी पसरी थक हार कर
    आसमां पर माहताब क्यों गुमनाम है ।

    वाह !!!
    बहुत भावपूर्ण रचना !!!

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