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Saturday, 28 November 2020

अप्सरा सी कौन


 अप्सरा सी कौन 


अहो द्युलोक से कौन अद्भुत

हेमांगी वसुधा पर आई।

दिग-दिगंत आभा आलोकित

मरुत बसंती सरगम गाई।।


महारजत के वसन अनोखे 

दप दप दमके कुंदन काया

आधे घूंघट चन्द्र चमकता

अप्सरा सी ओ महा माया

कणन कणन पग बाजे घुंघरु

सलिला बन कल कल लहराई।।


चारु कांतिमय रूप देखकर  

चाँद लजाया व्योम ताल पर

मुकुर चंद्रिका आनन शोभा

झुके झुके से नैना मद भर

पुहुप कली से अधर रसीले

ज्योत्सना पर लालिमा छाई।‌।


कौमुदी  कंचन संग लिपटी 

निर्झर जैसा झरता कलरव

सुमन की ये लगे सहोदरा

आँख उठे तो टूटे नीरव

चपल स्निग्ध निर्धूम शिखा सी

पारिजात बन कर  लहराई।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

20 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  2. बहुत ही सुंदर रचना। शब्द-शब्द अतिरंजित व तारीफ के परे।
    साधुवाद आदरणीया कुसुम जी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका पुरुषोत्तम जी।
      रचना के प्रति आपके सुंदर उद्गार अभिभूत करने वाले हैं।
      पुनः आभार।

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  3. सरस शब्दों से सजी सुंदर रचना ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  4. वाह! दप दप दमकती यह कुंदन-कृति!!!

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    1. आप गुणी जनों का स्नेह प्राप्त हुआ रचना को सृजन सार्थक हुआ।
      बहुत बहुत आभार आपका विश्व मोहन जी।

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  5. वाह!कुसुम जी ,अद्भुत !

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    1. बहुत बहुत आभार आपका शुभा जी।

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  6. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
      सस्नेह।

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  7. Replies
    1. सादर आभार आपका सादर अभिवादन।

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  8. बहुत बहुत आभार चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी।
    चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।

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  9. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
    पांच लिंक पर रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।

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  10. कोमलकांत शब्दावली से सुसज्जित अत्यंत मनोरम सृजन ।

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  11. दप दप दमके कुंदन काया

    अनुप्रास अलंकार की सुंदर छटा...
    बहुत मधुर रचना...
    हार्दिक बधाई !!!

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  12. दिग दिगंत तक अलौकिक आभा आलोकित हो रही है । अति सुंदर ।

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  13. चारु कांतिमय रूप देखकर

    चाँद लजाया व्योम ताल पर

    मुकुर चंद्रिका आनन शोभा

    झुके झुके से नैना मद भर

    पुहुप कली से अधर रसीले

    ज्योत्सना पर लालिमा छाई।‌।
    वाह!!!
    अद्भुत अप्रतिम बिम्ब एवं व्यंजनाएं सराहना से परे
    बहुत ही लाजवाब।

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