अप्सरा सी कौन
अहो द्युलोक से कौन अद्भुत
हेमांगी वसुधा पर आई।
दिग-दिगंत आभा आलोकित
मरुत बसंती सरगम गाई।।
महारजत के वसन अनोखे
दप दप दमके कुंदन काया
आधे घूंघट चन्द्र चमकता
अप्सरा सी ओ महा माया
कणन कणन पग बाजे घुंघरु
सलिला बन कल कल लहराई।।
चारु कांतिमय रूप देखकर
चाँद लजाया व्योम ताल पर
मुकुर चंद्रिका आनन शोभा
झुके झुके से नैना मद भर
पुहुप कली से अधर रसीले
ज्योत्सना पर लालिमा छाई।।
कौमुदी कंचन संग लिपटी
निर्झर जैसा झरता कलरव
सुमन की ये लगे सहोदरा
आँख उठे तो टूटे नीरव
चपल स्निग्ध निर्धूम शिखा सी
पारिजात बन कर लहराई।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteबहुत ही सुंदर रचना। शब्द-शब्द अतिरंजित व तारीफ के परे।
ReplyDeleteसाधुवाद आदरणीया कुसुम जी।
बहुत बहुत आभार आपका पुरुषोत्तम जी।
Deleteरचना के प्रति आपके सुंदर उद्गार अभिभूत करने वाले हैं।
पुनः आभार।
सरस शब्दों से सजी सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
वाह! दप दप दमकती यह कुंदन-कृति!!!
ReplyDeleteआप गुणी जनों का स्नेह प्राप्त हुआ रचना को सृजन सार्थक हुआ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका विश्व मोहन जी।
वाह!कुसुम जी ,अद्भुत !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शुभा जी।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह।
सुन्दर रचना - - नमन सह।
ReplyDeleteसादर आभार आपका सादर अभिवादन।
Deleteबहुत बहुत आभार चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी।
ReplyDeleteचर्चा मंच पर रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteपांच लिंक पर रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।
कोमलकांत शब्दावली से सुसज्जित अत्यंत मनोरम सृजन ।
ReplyDeleteदप दप दमके कुंदन काया
ReplyDeleteअनुप्रास अलंकार की सुंदर छटा...
बहुत मधुर रचना...
हार्दिक बधाई !!!
दिग दिगंत तक अलौकिक आभा आलोकित हो रही है । अति सुंदर ।
ReplyDeleteचारु कांतिमय रूप देखकर
ReplyDeleteचाँद लजाया व्योम ताल पर
मुकुर चंद्रिका आनन शोभा
झुके झुके से नैना मद भर
पुहुप कली से अधर रसीले
ज्योत्सना पर लालिमा छाई।।
वाह!!!
अद्भुत अप्रतिम बिम्ब एवं व्यंजनाएं सराहना से परे
बहुत ही लाजवाब।