Followers

Tuesday, 17 November 2020

कवि के स्वर पन्नों पर


 कवि के स्वर पन्नों पर


नयन मुकुर हो आज बोलते

बंद होंठ में गीत हुए।।


अव्यक्त लेखनी में रव है

कौन मूक ये शब्द पढ़े

जब फड़फड़ा बुलाते पन्ने

मोहक लेख मानस गढ़े

फिर उभरती व्यंजनाएं कुछ

भाव शल्यकी मीत हुए।।


रूखे मरू मधुबन बनादे

काव्य सार बह के बरसे

खिले कुसुम आकाश मधुरिमा

तम पर चंदनिया सरसे

मृदुल थाप बादल पर बजती

मारुत सुर संगीत हुये।।


कविता जो रुक जाये तो फिर

कल्पक कब जीवित रहता

रुकी लेखनी द्वंद हृदय में

फिर कल्पना कौन कहता

मौन गूँजते मन आँगन में

कंपित से भयभीत हुये।।


   कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

18 comments:

  1. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति..।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका ।
      सस्नेह।

      Delete
  2. Replies
    1. सादर आभार आपका आदरणीय।

      Delete
  3. कविता जो रुक जाये तो फिर
    कल्पक कब जीवित रहता
    रुकी लेखनी द्वंद हृदय में
    फिर कल्पना कौन कहता
    मौन गूँजते मन आँगन में
    कंपित से भयभीत हुये।।

    कवि की कल्पना और लेखनी का मौन सच में कवि के मन आँगन में गूँजने लगता है....
    बहुत ही लाजवाब नवगीत...
    वाह!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुंदर मुग्ध करती प्रतिक्रिया सुधा जी।
      आपने रचना को प्रवाह दिया ।
      सस्नेह।

      Delete
  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.11.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका मैं मंच पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सादर

      Delete
  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 19 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार मैं अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

      Delete
  6. काव्य सार बह कर बहा रहा है । अति सुन्दर ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।

      Delete
  7. वाह!बेहतरीन सृजन दी काफ़ी बार पढ़ा सृजन को हर बार बेहतरीन बस बेहतरीन 👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. This comment has been removed by the author.

      Delete
    2. बहुत सा स्नेह आभार बहना।
      सस्नेह।

      Delete
  8. कविता जो रुक जाये तो फिर

    कल्पक कब जीवित रहता

    रुकी लेखनी द्वंद हृदय में

    फिर कल्पना कौन कहता
    सुंदर अभिव्यक्ति सखी।

    ReplyDelete