हिल्लोल
चाँदनी का बाँध टूटा
भू उमंगित हो नहाए
पेड़ डूबे पात निखरे
चाँद फुनगी पर सुहाए।
खिलखिलाती है हवाएँ
झूमती हिल्लोल लेने
पात पादप में उलझती
नव मुकुल को नेह देने
लोल लतिका सुप्त जागे
डोलती सी गोद भाए।।
दौड़ती नाचे खुशी में
कंठ गिरि के झूमती हैं
नादिनी लहरी मचल कर
चोटियों को चूमती है
धुन नदी देती चली जब
उर्मियों ने गीत गाए।।
श्रृष्टि रचती रूप कितने
चेल अपने नित बदलती
मानसी मन मोहिनी सी
सांध्य दीपक बन मचलती
गोद में सुख सेज भी है
मोद का सोता बहाए।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
अहा !! गीत मन मोह ले जाये ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत !
ReplyDeleteदौड़ती नाचे खुशी में
ReplyDeleteकंठ गिरि के झूमती हैं
नादिनी लहरी मचल कर
चोटियों को चूमती है
धुन नदी देती चली जब
उर्मियों ने गीत गाए।।
वाह!!!!
अत्यंत मनमोहक एवं लाजवाब सृजन।