Thursday, 1 June 2023

हिल्लोल


 हिल्लोल


चाँदनी का बाँध टूटा

भू उमंगित हो नहाए

पेड़ डूबे पात निखरे

चाँद फुनगी पर सुहाए।


खिलखिलाती है हवाएँ

झूमती हिल्लोल लेने

पात पादप में उलझती

नव मुकुल को नेह देने

लोल लतिका सुप्त जागे

डोलती सी गोद भाए।।


दौड़ती नाचे खुशी में 

कंठ गिरि के झूमती हैं

नादिनी लहरी मचल कर

चोटियों को चूमती है

धुन नदी देती चली जब

उर्मियों ने गीत गाए।।


श्रृष्टि रचती रूप कितने

चेल अपने नित बदलती

मानसी मन मोहिनी सी

सांध्य दीपक बन मचलती

गोद में सुख सेज भी है

मोद का सोता बहाए।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

3 comments:

  1. अहा !! गीत मन मोह ले जाये ।

    ReplyDelete
  2. दौड़ती नाचे खुशी में

    कंठ गिरि के झूमती हैं

    नादिनी लहरी मचल कर

    चोटियों को चूमती है

    धुन नदी देती चली जब

    उर्मियों ने गीत गाए।।
    वाह!!!!
    अत्यंत मनमोहक एवं लाजवाब सृजन।

    ReplyDelete