Wednesday, 17 May 2023

धरा फिर मुस्कुराई


 धरा फिर मुस्कुराई


सिंधु से आँसू उठाकर 

बादलों ने घर दिए

ताप से जलती धरा पर

लेप शीतल कर दिए।


नेह सिंचित भूमि सरसी

पोर मुखरित खिल गया

ज्यों वियोगी काव्य को

छंद कोई मिल गया

गूंथ अलके श्यामली सी

फूल सुंदर धर दिए।।


ठूंठ होते पादपों पर

कोंपले खिलने लगी

प्राण में नव वायु दौड़ी

आस फिर फलने लगी

ज्योति हर कण में प्रकाशित

भोर ने ये वर दिए।।


शाख पर खिलते मुकुल पर

तितलियों ने गीत गाये

भूरि राँगा यूँ बिखरकर

पर्व होली का मनाये

ये कलाकृति पूछती है

रंग किसने भर दिए।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

11 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 18 मई 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 18 मई 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 18 मई 2023 को 'तितलियों ने गीत गाये' (चर्चा अंक 4664) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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  4. बहुत सुन्दर, मनभावन रचना है 👌🙏

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  5. अत्यंत मनमोहक रचना ।सादर।

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  6. कुदरत के सौंदर्य का अतुलित वर्णन !

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  7. प्रकृति का अलौकिक सौंदर्य निखर कर आ रहा।
    सुंदर रचना के लिए बधाई।

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  8. बहुत ही प्यारी रचना कुसुम महोदया

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  9. बेहद खूबसूरत रचना

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  10. सुंदर भावाभिव्यक्ति

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  11. वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब...
    मंत्रमुग्ध करती रचना
    👌👌👏👏🙏🙏

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