ज्ञान की आशा
कभी न मांगू भिक्षा बाबा ,
हाथ उठा के काँसा।
पढ़ना साहब बनना मुझको,
मैं न बजाऊं ताशा ।
तन सूखा है भीगी आँखे ,
चिथड़े लिपटी काया ।
पेट पीठ सब एक हो रहे ,
अहो भाग्य की माया ।
दुर्दिन की छाई है बदली ,
समय फेंकता पासा ।।
ऊपर सर के टूटी टपरी ,
भूख पसरती द्वारे ।
फिर भी मन में है दृढ़ इच्छा,
निज भविष्य संवारे।
कठिन राह की तोड़ वर्जना,
जगी ज्ञान की आशा ।।
थाम हाथ ली पटिया खड़िया ,
खूब लिखूं अब लिखना ।
बड़ी बनूंगी जब अधिकारी ,
मुझको दृढ़ है दिखना ।
बाबा कुछ दिन मुझे सँभालों ।
फिर जाऊंगी नासा ।।
कुसुम कोठारी।
कभी न मांगू भिक्षा बाबा ,
हाथ उठा के काँसा।
पढ़ना साहब बनना मुझको,
मैं न बजाऊं ताशा ।
तन सूखा है भीगी आँखे ,
चिथड़े लिपटी काया ।
पेट पीठ सब एक हो रहे ,
अहो भाग्य की माया ।
दुर्दिन की छाई है बदली ,
समय फेंकता पासा ।।
ऊपर सर के टूटी टपरी ,
भूख पसरती द्वारे ।
फिर भी मन में है दृढ़ इच्छा,
निज भविष्य संवारे।
कठिन राह की तोड़ वर्जना,
जगी ज्ञान की आशा ।।
थाम हाथ ली पटिया खड़िया ,
खूब लिखूं अब लिखना ।
बड़ी बनूंगी जब अधिकारी ,
मुझको दृढ़ है दिखना ।
बाबा कुछ दिन मुझे सँभालों ।
फिर जाऊंगी नासा ।।
कुसुम कोठारी।
सुंदर भावपूर्ण रचना.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत।
ReplyDeleteकभी न मांगू भिक्षा बाबा ,
ReplyDeleteहाथ उठा के काँसा।
पढ़ना साहब बनना मुझको,
मैं न बजाऊं ताशा ।
बहुत सुंदर, अभिव्यक्ति कुसुम दी।
बहुत सुंदर रचना सखी
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