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Thursday, 9 April 2020

प्रतीक्षा

प्रतीक्षा

हृदय मरूस्थल मृगतृष्णा सी,
भटके मन की हिरणी।
सूखी नदिया तीर पड़ी ज्यों
ठूंठ काठ की तरणी।।

कब तक राह निहारे किसकी,
सूरज डूबा जाता।
काया झँझर मन झंझावात,
हाथ कभी क्या आता।
अंतर दहकन दिखा न पाए
कृशानु तन की अरणी।।

रेशम धागा उलझ रखा है,
गांठ पड़ी है पक्की।
भँवर याद के चक्कर काटे
जैसे चलती चक्की।
जाने वाले जब लौटेंगे
तभी रुकेगी दरणी।‌।

सुधि वन की मृदु कोंपल कच्ची,
पोध सँभाल रखी है।
सूनी गीली साँझ में पीर ,
एक घनिष्ठ सखी है।।
दिन विहान औ रातें बीती,
वहीं रुकी अवतरणी ।।

कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"

32 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      पाँच लिंक पर आना सदा मनहर रहता है।
      मैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।

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  2. बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योति बहन आप लोगों का स्नेह मेरी लेखनी की ताकत है।

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  3. सूनी गीली साँझ में पीर ,
    एक घनिष्ठ सखी है।।
    दिन विहान औ रातें बीती,
    वहीं रुकी अवतरणी ।।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति कुसुम जी ,सादर नमन आपको

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी सुन्दर सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  4. Man ki peer jaise shbdon mein ubhar aai ...
    sundar rachna ...

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      आपकी मोहक टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।

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  5. मनमोहक बिम्बों से सजा हृदयस्पर्शी नवगीत जिसमें दार्शनिकता के आयाम छलक पड़े हैं। लिखते रहिए। बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    सादर नमन आदरणीया दीदी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका भाई रविन्द्र जी।
      सुंदर विस्तृत टिप्पणी से रचना में नवप्राण संचार हुए।
      सदा आपका प्रोत्साहन उर्जावान होता है लेखन के लिए।

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  6. बहुत सुन्दर गीत प्रस्तुति।

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    1. जी सादर आभार आपका आदरणीय।
      रचना सार्थक हुई।

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  7. बहुत बढ़िया

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  8. कई बिम्बों से गुजरा पढ़ते वक्त।
    सुंदर रचना।
    नई रचना - एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए 

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका उर्जा वर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

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  9. खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत सुंदर आदरणीया ।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय ।
      आपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सादर।

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  10. This comment has been removed by the author.

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  11. प्रतीक्षा को नए अर्थों में परिभाषित करता बहुत मनमोहक नवगीत आदरणीया कुसुम दीदी.भावों के साथ बिम्ब बहुत सुंदर हैं. आपके नवगीत हमारा मार्गदर्शन करते हैं.
    सादर

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    1. बहुत सा स्नेह आभार आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना में निहित भाव मुखरित हुए ।
      सस्नेह।

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  12. रेशम धागा उलझ रखा है,
    गांठ पड़ी है पक्की।
    भँवर याद के चक्कर काटे
    जैसे चलती चक्की।
    वाह!!!!
    बहुत ही लाजवाब नवगीत
    अद्भुत शब्द संयोंजन

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    1. बहुत बहुत आभार सुधाजी आपकी मोहक टिप्पणी से उत्साह वर्धन हुआ ,रचना को प्रवाह मिला।
      सस्नेह।

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  13. वाह!लाजवाब सृजन कुसुम जी ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका शुभा जी आप से सदा उत्साह मिलता है ।
      सस्नेह।

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  14. सुधि वन की मृदु कोंपल कच्ची,
    पोध सँभाल रखी है।
    सूनी गीली साँझ में पीर ,
    एक घनिष्ठ सखी है।।
    रचनाओं में आप बिम्बों को सुंदर तरीके से पिरोती हैं जो मनभावन बन जाता है। बधाई व शुभकामनाएँ आदरणीया कुसुम जी।

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  15. बहुत-बहुत आभार पुरुषोत्तम जी ,आपकी प्रतिक्रिया ने रचना का और लेखन दोनों का मान बढ़ाया ।
    ढेर सा आभार पुनः सदा यूं ही उत्साह वर्धन करते रहिएगा।

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  16. बेहतरीन रचना सखी 👌

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  17. प्रभावी अभिव्यक्ति ...बधाई आपको

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  18. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19 -4 -2020 ) को शब्द-सृजन-१७ " मरुस्थल " (चर्चा अंक-3676) पर भी होगी,
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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  19. सखी सुंदर सृजन

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  20. This comment has been removed by the author.

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