Followers

Thursday, 23 April 2020

तांडव

तांडव

भीगी मृदा पाल बांधे
तोड़ सारे मोह धागे।
चलाचल की इस घड़ी में
रूठ सारे भूत भागे।

असमंजस के पल अद्भुत
रोगी रोग भूल बैठा।
डरे सहमे से चिकित्सक
इक  विषाणु ऐसा  ऐंठा।
व्याधियाँ हँसने लगी हैं
सो रहे दिन रात जागे।।

एक कालिमा अदृश्य सी
सारे विश्व पटल छाई।
पासे फेंक करे क्रीड़ा
खेले ज्यों चौसर  घाई।
हार किसकी जीत कैसी
भग्न तार उलझे तागे ।।

मंदिरों ताले पड़े हैं
प्रभु को भी एकांत वास।
दुर्दिन काल घंटा बजा
सृजन शांत नाचे विनाश ।
शंखनाद के स्वर बदले
भँवर में कितने अभागे।।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

10 comments:

  1. शानदार सृजन 👌🏻👌🏻👌🏻

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी।

      Delete
  2. बहुत सुन्दर।
    विश्व पुस्तक दिवस की बधाई हो।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आदरणीय आपको भी बहुत बहुत बधाई।
      सादर आभार आपका।

      Delete
  3. वाह ! बेहतरीन सृजन आदरणीया दीदी 👌
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सा स्नेह आभार प्रिय अनिता जी ।

      Delete
  4. वाह!कुसुम जी ,खूबसूरत सृजन !

    ReplyDelete
  5. बहुत बहुत आभार आपका।
    मैं पांच लिंक पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।

    ReplyDelete
  6. बहुत बहुत आभार आपका शुभा जी सस्नेह।

    ReplyDelete
  7. असमंजस के पल अद्भुत
    रोगी रोग भूल बैठा।
    डरे सहमे से चिकित्सक
    इक विषाणु ऐसा ऐंठा।
    व्याधियाँ हँसने लगी हैं
    सो रहे दिन रात जागे।।
    बहुत ही शानदार समसामयिक नवगीत
    वाह!!!

    ReplyDelete