तांडव
भीगी मृदा पाल बांधे
तोड़ सारे मोह धागे।
चलाचल की इस घड़ी में
रूठ सारे भूत भागे।
असमंजस के पल अद्भुत
रोगी रोग भूल बैठा।
डरे सहमे से चिकित्सक
इक विषाणु ऐसा ऐंठा।
व्याधियाँ हँसने लगी हैं
सो रहे दिन रात जागे।।
एक कालिमा अदृश्य सी
सारे विश्व पटल छाई।
पासे फेंक करे क्रीड़ा
खेले ज्यों चौसर घाई।
हार किसकी जीत कैसी
भग्न तार उलझे तागे ।।
मंदिरों ताले पड़े हैं
प्रभु को भी एकांत वास।
दुर्दिन काल घंटा बजा
सृजन शांत नाचे विनाश ।
शंखनाद के स्वर बदले
भँवर में कितने अभागे।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
भीगी मृदा पाल बांधे
तोड़ सारे मोह धागे।
चलाचल की इस घड़ी में
रूठ सारे भूत भागे।
असमंजस के पल अद्भुत
रोगी रोग भूल बैठा।
डरे सहमे से चिकित्सक
इक विषाणु ऐसा ऐंठा।
व्याधियाँ हँसने लगी हैं
सो रहे दिन रात जागे।।
एक कालिमा अदृश्य सी
सारे विश्व पटल छाई।
पासे फेंक करे क्रीड़ा
खेले ज्यों चौसर घाई।
हार किसकी जीत कैसी
भग्न तार उलझे तागे ।।
मंदिरों ताले पड़े हैं
प्रभु को भी एकांत वास।
दुर्दिन काल घंटा बजा
सृजन शांत नाचे विनाश ।
शंखनाद के स्वर बदले
भँवर में कितने अभागे।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
शानदार सृजन 👌🏻👌🏻👌🏻
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteविश्व पुस्तक दिवस की बधाई हो।
जी आदरणीय आपको भी बहुत बहुत बधाई।
Deleteसादर आभार आपका।
वाह ! बेहतरीन सृजन आदरणीया दीदी 👌
ReplyDeleteसादर
बहुत सा स्नेह आभार प्रिय अनिता जी ।
Deleteवाह!कुसुम जी ,खूबसूरत सृजन !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
ReplyDeleteमैं पांच लिंक पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
बहुत बहुत आभार आपका शुभा जी सस्नेह।
ReplyDeleteअसमंजस के पल अद्भुत
ReplyDeleteरोगी रोग भूल बैठा।
डरे सहमे से चिकित्सक
इक विषाणु ऐसा ऐंठा।
व्याधियाँ हँसने लगी हैं
सो रहे दिन रात जागे।।
बहुत ही शानदार समसामयिक नवगीत
वाह!!!