नैना रे अब ना बरसना
शीत लहरी सी जगत की संवेदना,
आँसू अपने आंखों में ही छुपा रखना ।
नैना रे अब ना बरसना।
शिशिर की धूप भी आती है ओढ़ दुशाला ,
अपने ही दर्द को लपेटे है यहाँ सारा जमाना।
नैना रे अब ना बरसना।
देखो खिले खिले पलाश भी लगे झरने,
डालियों को अलविदा कह चले पात सुहाने।
नैना रे अब ना बरसना।
सलज कुसुम ओढ़ तुषार दुकूल प्रफुल्लित ,
प्रकृति के सुसुप्त नैसर्गिक द्रव्य है मुखलित।
नैना रे अब ना बरसना।
जो कल न कर सका उस से न हो अधीर ,
है जो आज उसे कर इष्ट मुक्ता सम स्वीकार ।
नैना रे अब ना बरसना ।
कुसुम कोठारी।
शीत लहरी सी जगत की संवेदना,
आँसू अपने आंखों में ही छुपा रखना ।
नैना रे अब ना बरसना।
शिशिर की धूप भी आती है ओढ़ दुशाला ,
अपने ही दर्द को लपेटे है यहाँ सारा जमाना।
नैना रे अब ना बरसना।
देखो खिले खिले पलाश भी लगे झरने,
डालियों को अलविदा कह चले पात सुहाने।
नैना रे अब ना बरसना।
सलज कुसुम ओढ़ तुषार दुकूल प्रफुल्लित ,
प्रकृति के सुसुप्त नैसर्गिक द्रव्य है मुखलित।
नैना रे अब ना बरसना।
जो कल न कर सका उस से न हो अधीर ,
है जो आज उसे कर इष्ट मुक्ता सम स्वीकार ।
नैना रे अब ना बरसना ।
कुसुम कोठारी।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
६ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
स्नेहिल आभार आपका ।
Deleteमैं अवश्य उपस्थित रहूंगी।
पांच लिंक पर आना सदा सुखद होता है ।
बेहतरीन सृजन सखी कुसुम जी।सादर अभिनंदन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteवाह ! क्या बात है ! खूबसूरत प्रस्तुति आदरणीया ! बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteरचना को सार्थकता मिली।
सादर।
वाह सुन्दर प्रस्तुति कुसुम जी
ReplyDeleteजी बहुत सा स्नेह आभार आपका, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteजो कल न कर सका उस से न हो अधीर ,
ReplyDeleteहै जो आज उसे कर इष्ट मुक्ता सम स्वीकार ।
नैना रे अब ना बरसना
लाज़बाब ... सृजन कुसुम जी ,सादर नमन आपको
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी
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