रस धरती के सूख रहे ।
मलीन चीर की संकुचन
रस धरणी के खूट रहे ।
निज सुत हाथों दोहन हा,
किस विधि देखो लूट रहे ।।
तन सूखा तन्वंगी नदियां ,
अश्रु गाल पर सूख गये ।
तृषित पखेरू नभ पर उड़ते ,
रेत ओढ़नी रूंख गये।
दरक दरक कर ये तन टूटा,
और भाग ही फूट रहे।।
हरित चुनरिया धूसर है अब ,
कंक्रीटों के वन भारी ।
जंगल मरघट से दावानल,
विपदा आएगी भारी ।
प्रसू अम्बिका माँ को अपनी ,
अपने हाथों चूट रहे ।।
अगन बरसती आसमान से ,
निसर्ग जाने क्या चाहे।
मनुज क्रूर कितना निर्मोही,
सिर्फ निज आनंद चाहे।
हर दिन आती विपदा भारी,
संबल सारे टूट रहे।।
कुसुम कोठारी।
विपदा में सब धैर्य टूटने लगते है पर इंसान का सब्र ऐसे में ही काम आता है ...
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण लाजवाब रचना है ...
सादर आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार आपका पाँच लिंक में आना सदा सुखदाई होता है ।
Deleteसस्नेह।
वाह ! क्या बात है ! खूबसूरत प्रस्तुति आदरणीया । बहुत खूब ।
ReplyDeleteसादर आभार आपका , सार्थक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
Deleteसादर।
दुनिया की वर्तमान स्थिति का चित्रण करती बहुत अच्छी रचना कुसुम जी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी।
Deleteआपकी सक्रिय उपस्थित आनंद दायक ।
सस्नेह ।
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteवाह!कुसुम जी ,बेहतरीन ! सच में मानव निजानंद के लिए कितना क्रूर होता जा रहा है ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शुभा जी।
Deleteरचना सार्थक हुई।सस्नेह।
अगन बरसती आसमान से ,
ReplyDeleteनिसर्ग जाने क्या चाहे।
मनुज क्रूर कितना निर्मोही,
सिर्फ निज आनंद चाहे
सिर्फ खुद का आनंद खुद के स्वार्थ में ही लिप्त हैं ,सुंदर सृजन कुसुम जी ,सादर नमन आपको
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
Deleteउत्साहवर्धन करती आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
बहुत बहुत आभार आपका ।
ReplyDeleteसादर।
समसामयिक परिस्थितियों मे अन्य जीवों का कोलाहल देख कर मानव के स्वार्थ पर मन सच में आंदोलित हो उठता है।मन के अत्यंत करीब भावपूर्ण रचना ।
ReplyDeleteसादर ।
तन सूखा तन्वंगी नदियां ,
ReplyDeleteअश्रु गाल पर सूख गये ।
तृषित पखेरू नभ पर उड़ते ,
रेत ओढ़नी रूंख गये।
दरक दरक कर ये तन टूटा,
और भाग ही फूट रहे।।
बहुत सुन्दर अद्भुत ....
समसामयिक लाजवाब सृजन
वाह!!!