मन की गति कोई न समझे
भावना के गहरे भँवर में
डूबे उभरे पल क्षण पल क्षण।
मन की गति कोई ना समझे
डोला घूमा हर कण हर कण।
कभी अर्श चढ़ कभी फर्श पर
उड़ता फिरता मारा मारा ।
मीश्री सा मधुर और मीठा
कभी सिंधु सा खारा खारा।
कोई इसको समझ न पाया
समझा कोई हर कण हर कण।।
भावना के गहरे भँवर में
डूबे उभरे पल क्षण पल क्षण।।
कभी दूर तक नाता जोड़े
नज़र अंदाज अपनें होते
गुमसुम किसी गुफा में घूमे
बागों में हरियाली जोते
कैसे कैसे स्वाग रचाए
इसकी आभा हर कण हर कण।
भावना के गहरे भँवर में
डूबे उभरे पल क्षण पल क्षण।।
कुसुम कोठारी।
भावना के गहरे भँवर में
डूबे उभरे पल क्षण पल क्षण।
मन की गति कोई ना समझे
डोला घूमा हर कण हर कण।
कभी अर्श चढ़ कभी फर्श पर
उड़ता फिरता मारा मारा ।
मीश्री सा मधुर और मीठा
कभी सिंधु सा खारा खारा।
कोई इसको समझ न पाया
समझा कोई हर कण हर कण।।
भावना के गहरे भँवर में
डूबे उभरे पल क्षण पल क्षण।।
कभी दूर तक नाता जोड़े
नज़र अंदाज अपनें होते
गुमसुम किसी गुफा में घूमे
बागों में हरियाली जोते
कैसे कैसे स्वाग रचाए
इसकी आभा हर कण हर कण।
भावना के गहरे भँवर में
डूबे उभरे पल क्षण पल क्षण।।
कुसुम कोठारी।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 11 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर ।
बहुत सुन्दर गीत
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय।
Deleteजीवन की अनुभूतियों की बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति कुसुम जी !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी ।
Deleteसस्नेह।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12.03.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3638 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार आदरणीय ।
Deleteमैं अवश्य उपस्थित रहूंगी।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना गुरूवार १२ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteमैं अवश्य उपस्थित रहूंगी।
सस्नेह।
कभी अर्श चढ़ कभी फर्श पर
ReplyDeleteउड़ता फिरता मारा मारा ।
मीश्री सा मधुर और मीठा
कभी सिंधु सा खारा खारा।
कोई इसको समझ न पाया
समझा कोई हर कण हर कण।।
बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।
बहुत आभार ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह।
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
भावना के गहरे भँवर में
ReplyDeleteडूबे उभरे पल क्षण पल क्षण।
मन की गति कोई ना समझे
डोला घूमा हर कण हर कण।
बहुत ही सुंदर भावों ,सादर नमन आपको
ढेर सा आभार कामिनी जी ।
Deleteसस्नेह।
बहुत अच्छी रचना ,नमस्कार आपको
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
वाह बहुत सुंदर नवगीत सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी।
Deleteसस्नेह।