बुला रही थी सपने आ तू
पलकों के पलने खाली है।
तंद्रा जाल घिरा था मन पर
लगा नींद आने वाली है।।
अंधकार ने फेंका पासा
जैसे आभा पर परदा है
अंतर में थी घोर निराशा
हृदय आलोक भी मंदा है
ऐसे मेघ घिरे थे काले
खंडित वृक्ष की डाली है।
तंद्रा जाल घिरा था मन पर
लगा नींद आने वाली है।।
काँच के जैसे बिखरे सपने
किरचिंया चुभती है तीखी
करवट बदली हर पहलू में
पीड़ा चुभती एक सरीखी
महत्वकांक्षा के घोड़े पर
उजड़े उपवन का माली है।
तंद्रा जाल घिरा था मन पर
लगा नींद आने वाली है।।
सहसा एक उजाला अंदर
सारे ताले ही तोड़ गया
चलो उठो का रव ये गूंजा
विश्वास झरोखे खोल गया
जागो समझो तभी सवेरा
अँधकार भगाने वाली है।
तंद्रा जाल घिरा था मन पर
लगा नींद आने वाली है।।
कुसुम कोठारी।
पलकों के पलने खाली है।
तंद्रा जाल घिरा था मन पर
लगा नींद आने वाली है।।
अंधकार ने फेंका पासा
जैसे आभा पर परदा है
अंतर में थी घोर निराशा
हृदय आलोक भी मंदा है
ऐसे मेघ घिरे थे काले
खंडित वृक्ष की डाली है।
तंद्रा जाल घिरा था मन पर
लगा नींद आने वाली है।।
काँच के जैसे बिखरे सपने
किरचिंया चुभती है तीखी
करवट बदली हर पहलू में
पीड़ा चुभती एक सरीखी
महत्वकांक्षा के घोड़े पर
उजड़े उपवन का माली है।
तंद्रा जाल घिरा था मन पर
लगा नींद आने वाली है।।
सहसा एक उजाला अंदर
सारे ताले ही तोड़ गया
चलो उठो का रव ये गूंजा
विश्वास झरोखे खोल गया
जागो समझो तभी सवेरा
अँधकार भगाने वाली है।
तंद्रा जाल घिरा था मन पर
लगा नींद आने वाली है।।
कुसुम कोठारी।
वाह बेहतरीन गीत सखी
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी ,।
Delete
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर गीत ,सादर नमन कुसुम जी
सस्नेह आभार आपका कामिनी जी ।
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
सादर आभार आपका।
ReplyDeleteमैं अवश्य उपस्थित रहूंगी।
सादर।
बुला रही थी सपने आ तू
ReplyDeleteपलकों के पलने खाली है।
तंद्रा जाल घिरा था मन पर
लगा नींद आने वाली है।।
सुंदर मनभावन गीत प्रिय कुसुम बहन | शुरुआत की पंक्तियाँ ही बहुत प्यारी हैं | मानों कोई उनींदी आँखों से अस्फुट स्वर में अपने विकल मन की बात कहा रहा हो | अन्धकार कितना भी पासा फेंकें -- हर रात की नियति ढलना तय है तो भोर का आना भी | निराशा की रात के आंगन में उजाले की दस्तक देती रचना के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं |
सकारात्मक ऊर्जा का संकेत उम्दा।
ReplyDeleteलाज़वाब गीत।
नई रचना- सर्वोपरि?
सच है कै बात अत्यधिक आकांक्शा सपनो को धूमिल कर देति है ...
ReplyDeleteबहुत भाव्पूर्न रचना ...