तू कैसो रंगरेज
ना खेरू होली तोरे संग सांवरीया
बिन खेले तोरे रंग रची मैं
कछु नाही मुझ में अब मेरो
किस विधि च्ढ्यो रंग छुडाऊं
तू कैसो रंगरेज ओ कान्हा
कौन देश को रंग मँगायो
बिन डारे मैं हुई कसुम्बी
तन मन सारो ही रंग ड़ारयो
ना खेलूं होरी तोरे संग ।
कुसुम कोठारी ।
आपको होली की अग्रिम शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteसाभार आपको भी रंगोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएं।
Deleteबहुत सुंदर पंक्तियाँ सखी, आपको होली की अग्रिम शुभकामनाएं 💐
ReplyDeleteआपको भी रंगोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएं सखी।
Deleteसस्नेह।
प्रेम रो रंग अलबेलो ई होवे है
ReplyDeleteकदे उतारणे से ना उतरे।
बहोत चौखी रचना है थारी।
अठे उडीक रेवेला- कविता २
साभार , रंगोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएं।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteरंगों के महापर्व
होली की बधाई हो।
जी आदरणीय, आपको भी रंगोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएं।
Deleteसादर।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10 -3-2020 ) को " होली बहुत उदास " (चर्चाअंक -3636 ) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी । चर्चा मंच पर मेरी रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।
Deleteमैं उपस्थित होने की कोशिश जरूर करूंगी ।
बहुत सुंदर रचना कुसुम दी। होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआपको भी ज्योति बहन रंगोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएं।
Deleteसस्नेह।