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Tuesday, 17 March 2020

काग और हंस

काग और हंस

मुक्ता छोड़ अब हंस
चुनते फिरते दाना।
रंग शुभ्रा आड़ में
रहे काग यश पाना।

अपनी डफ़ली बजा बजा
सरगम सुनाते बेसुरी
बन देवता वो बोलते
कथन सब होते आसुरी।
मातम मनाते सियारी
हू हू कर झुठ का गाना।
रंग शुभ्रा आड़ में
रहे काग यश पाना।

चमक दमक सब बाहर की
कपड़े उजले, मन काला
तिलक भाल पर संदल का
कर थामे झुठ की माला
मनका फेरत जुग बीता
न फिरा बैर का ताना
रंग शुभ्रा आड़ में
रहे काग यश पाना।।

बिन पेंदी के लोटे जी
गंगा गये  गंगा राम
हां में हां करता रहता
जमुना गया जमुना राम
नाम बदल लो क्या जाता
डाल कबूतर को दाना
रंग शुभ्रा आड़ में
रहे काग यश पाना।

कुसुम कोठारी।

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत खूब ,लाज़बाब व्यंग ,सुंदर सृजन ,सादर नमन कुसुम जी

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  3. मुँह में जबान कोई और
    मन मे काम कोई और।
    सुंदर रचना।
    नई रचना- सर्वोपरि?

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (20-03-2020) को महामारी से महायुद्ध ( चर्चाअंक - 3646 ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    आँचल पाण्डेय

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  5. ये तो आज क सच है ... बहुत सुंदर अम्दाज मैं व्यक्त किया है ...

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  6. बहुत अच्छी प्रस्तुति

    Mere blog par aapka swagat hai.....

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  7. बिन पेंदी के लोटे जी
    गंगा गये गंगा राम
    हां में हां करता रहता
    जमुना गया जमुना राम
    नाम बदल लो क्या जाता
    डाल कबूतर को दाना
    रंग शुभ्रा आड़ में
    वाह दी क्यया
    रहे काग यश पाना।

    वाह दी क्या बात है सत्य का उद्बबोधन करती व्यंग्यात्मक सृजन।

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  8. बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति सखी

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  9. चाटुकारों और छद्म वेशधारियों का युग है बहना |और उनपर तीखा प्रहार करना खरी बात कहना बस एक सुदक्ष कवी ही कर सकता है | क्या गजब के तीर मारे हैं व्यंग है -- सच में --------
    अपनी डफ़ली बजा बजा
    सरगम सुनाते बेसुरी
    बन देवता वो बोलते
    कथन सब होते आसुरी।
    मातम मनाते सियारी
    हू हू कर झुठ का गाना।
    रंग शुभ्रा आड़ में
    रहे काग यश पाना।
    पढ़ा तो बस वाह निकलता है मन से | सस्नेह --

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