काग और हंस
मुक्ता छोड़ अब हंस
चुनते फिरते दाना।
रंग शुभ्रा आड़ में
रहे काग यश पाना।
अपनी डफ़ली बजा बजा
सरगम सुनाते बेसुरी
बन देवता वो बोलते
कथन सब होते आसुरी।
मातम मनाते सियारी
हू हू कर झुठ का गाना।
रंग शुभ्रा आड़ में
रहे काग यश पाना।
चमक दमक सब बाहर की
कपड़े उजले, मन काला
तिलक भाल पर संदल का
कर थामे झुठ की माला
मनका फेरत जुग बीता
न फिरा बैर का ताना
रंग शुभ्रा आड़ में
रहे काग यश पाना।।
बिन पेंदी के लोटे जी
गंगा गये गंगा राम
हां में हां करता रहता
जमुना गया जमुना राम
नाम बदल लो क्या जाता
डाल कबूतर को दाना
रंग शुभ्रा आड़ में
रहे काग यश पाना।
कुसुम कोठारी।
मुक्ता छोड़ अब हंस
चुनते फिरते दाना।
रंग शुभ्रा आड़ में
रहे काग यश पाना।
अपनी डफ़ली बजा बजा
सरगम सुनाते बेसुरी
बन देवता वो बोलते
कथन सब होते आसुरी।
मातम मनाते सियारी
हू हू कर झुठ का गाना।
रंग शुभ्रा आड़ में
रहे काग यश पाना।
चमक दमक सब बाहर की
कपड़े उजले, मन काला
तिलक भाल पर संदल का
कर थामे झुठ की माला
मनका फेरत जुग बीता
न फिरा बैर का ताना
रंग शुभ्रा आड़ में
रहे काग यश पाना।।
बिन पेंदी के लोटे जी
गंगा गये गंगा राम
हां में हां करता रहता
जमुना गया जमुना राम
नाम बदल लो क्या जाता
डाल कबूतर को दाना
रंग शुभ्रा आड़ में
रहे काग यश पाना।
कुसुम कोठारी।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत खूब ,लाज़बाब व्यंग ,सुंदर सृजन ,सादर नमन कुसुम जी
ReplyDeleteसुन्दर गीत
ReplyDeleteमुँह में जबान कोई और
ReplyDeleteमन मे काम कोई और।
सुंदर रचना।
नई रचना- सर्वोपरि?
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (20-03-2020) को महामारी से महायुद्ध ( चर्चाअंक - 3646 ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
आँचल पाण्डेय
ये तो आज क सच है ... बहुत सुंदर अम्दाज मैं व्यक्त किया है ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteMere blog par aapka swagat hai.....
बिन पेंदी के लोटे जी
ReplyDeleteगंगा गये गंगा राम
हां में हां करता रहता
जमुना गया जमुना राम
नाम बदल लो क्या जाता
डाल कबूतर को दाना
रंग शुभ्रा आड़ में
वाह दी क्यया
रहे काग यश पाना।
वाह दी क्या बात है सत्य का उद्बबोधन करती व्यंग्यात्मक सृजन।
बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति सखी
ReplyDeleteचाटुकारों और छद्म वेशधारियों का युग है बहना |और उनपर तीखा प्रहार करना खरी बात कहना बस एक सुदक्ष कवी ही कर सकता है | क्या गजब के तीर मारे हैं व्यंग है -- सच में --------
ReplyDeleteअपनी डफ़ली बजा बजा
सरगम सुनाते बेसुरी
बन देवता वो बोलते
कथन सब होते आसुरी।
मातम मनाते सियारी
हू हू कर झुठ का गाना।
रंग शुभ्रा आड़ में
रहे काग यश पाना।
पढ़ा तो बस वाह निकलता है मन से | सस्नेह --