मन आँगन
जब दिल की मुंडेर पर ,
अस्त होता सूरज आ बैठता है।
श्वासों में कुछ मचलता है
कुछ यादें छा जाती
सुरमई सांझ बन ,
जहाँ हल्का धुंधलका
हल्की रोशनी,
कुछ उड़ते बादल मस्ती में,
डोलते मनोभावों जैसे
हवाके झोंके,
सोया एहसास जगाते ,
होले-होले बेकरारियों को
थपकी दे सुलाते ,
मन गगन पर वो उठता चांद
रोशनी से पूरा आँगन, जगमगा देता,
मन दहलीज पर,
मोती चमकता मुस्कान का ,
फिर नये ख्वाब लेते अंगड़ाई
होले - होले,
जब दिल की.........
कुसुम कोठारी ।
जब दिल की मुंडेर पर ,
अस्त होता सूरज आ बैठता है।
श्वासों में कुछ मचलता है
कुछ यादें छा जाती
सुरमई सांझ बन ,
जहाँ हल्का धुंधलका
हल्की रोशनी,
कुछ उड़ते बादल मस्ती में,
डोलते मनोभावों जैसे
हवाके झोंके,
सोया एहसास जगाते ,
होले-होले बेकरारियों को
थपकी दे सुलाते ,
मन गगन पर वो उठता चांद
रोशनी से पूरा आँगन, जगमगा देता,
मन दहलीज पर,
मोती चमकता मुस्कान का ,
फिर नये ख्वाब लेते अंगड़ाई
होले - होले,
जब दिल की.........
कुसुम कोठारी ।
वाह !आदरणीया दीदी निशब्द करती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति अंतःस्थ को छूता एक एक शब्द आभास हुआ जैसे आस को मुठ्ठी में दबाये हवा की थाप आँगन में उतर आयी है... बहुत ही सुंदर 🌹
ReplyDeleteबहुत बहुत स्नेह आभार ,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
Deleteरचना की आत्मा तक उतरने के लिए हृदय तल से आभार।
लेखन को सार्थकता मिली।
सस्नेह।
खूबसूरत ख्यालात
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका ।
सादर।
बहुत सुन्दर उपयोगी रचना।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मिलने मात्र से रचना सार्थक हुई ।
Deleteसादर।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 06 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर आभार सांध्य मुखरित मौन में शामिल होना सुखद अनुभव है।
ReplyDeleteमैं अवश्य उपस्थित रहूंगी।
सादर।
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ReplyDeleteकुछ यादें छा जाती
ReplyDeleteसुरमई सांझ बन ,
जहाँ हल्का धुंधलका
हल्की रोशनी,
कुछ उड़ते बादल मस्ती में,
डोलते मनोभावों जैसे
हवा के झोंके,
सोया एहसास जगाते ,
होले-होले बेकरारियों को
थपकी दे सुलाते
बहुत खूबसूरती भावाभिव्यक्ति कुसुम जी ।
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteहवाके झोंके,
ReplyDeleteसोया एहसास जगाते ,
होले-होले बेकरारियों को
थपकी दे सुलाते ,
मन गगन पर वो उठता चांद
रोशनी से पूरा आँगन, जगमगा देता,
मन दहलीज पर,
मोती चमकता मुस्कान का ,
फिर नये ख्वाब लेते अंगड़ाई
होले - होले,
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर...लाजवाब सृजन...।
बेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 24 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति! बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर बार-बार पढ़ने को पुकारती अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर